“अरे, उठो उठो, तुम अब तक सो ही रहे हो,” तारा ने कमरे के सभी पर्दों को खोलते हुए कहा.

ध्रुव ने अपनी नींदभरी आंखों को मलते हुए कहा, “क्या यार, सोने दो न.”

“क्यों, आज औफिस नहीं जाना है क्या?”

“हां, आज नहीं जाना. आज मैं ने छुट्टी ली हुई है, यार, स्पैशली सोने के लिए,” कहते हुए ध्रुव ने दूसरी ओर करवट ले ली.

“अरे, मुझे कुछ नहीं सुनना. तुम फटाफट उठ कर रेडी हो जाओ, आज होली है, भई.”

“हां तो, उस के लिए कौन रेडी होता है. होली तो खेलने के बाद रेडी होने वाला त्योहार है न.”

“कैसी बातें करते हो, ध्रुव, अपने परिवार में नहाधो कर ठाकुर जी को भोग और रंग लगाने के बाद ही होली शुरू होती है.”

“अरे, यह मत भूलो, अपन अपने देश में नहीं, विदेश में रह रहे हैं जानेमन.”

“हां, हां, पता है मुझे. सब याद है मुझे,” मन में एक हलकी सी निराशा लिए तारा ने ध्रुव से कहा.

ध्रुव तारा की ज़बान पर आई ख़ामोशी को ताड़ गया और झट उठ कर तैयार होने को बाथरूम में चला गया.

इधर तारा एक गीत गुनगुनाते हुए गुलदस्ते में फूल लगा रही है कि ‘रंगरंग के फूल खिले, मुझे भाय कोई रंग न, अब आन मिलो सजना, आन मिलो...’

तभी ध्रुव ने आ कर पीछे से तारा को अपनी बांहों में भरते हुए कहा, "तुम ने पुकारा और हम चले आए..."

“अरे वाह, तुम तो बड़ी जल्दी तैयार हो गए.”

“हां, तुम ने जो कहा था.”

“अच्छा जी.”

“जी.”

“तो चलो फिर, अब क्रिया कर लेते हैं.”

“हां, चलो.”

वहीं, ध्रुव ने देखा कि तारा ने तो बहुत से पकवान बनाए हुए हैं भोग के लिए.

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