लेखिका-निधि अमित पांडे
पूजा ने भी ममता पर इस बात के लिए दबाव नहीं डाला था. पूजा के पति साहिल एक कंपनी में बड़े पद पर काम करते थे. उन्हें भी काम के सिलसिले में अकसर शहर से बाहर जानाआना पड़ता था. ऐसे में पूजा के पूरे घर की जिम्मेदारी ममता के कंधों पर थी. ममता को अपने घर वापस जाने में शाम हो जाती थी. तब तक राधा स्कूल से आ कर घर के सारे काम निबटा देती थी ताकि मां को बंगले पर से लौट के आने के बाद कुछ करना न पड़े और वह आराम कर सके.
ममता के घर वापस आने के बाद शाम की चाय दोनो मांबेटी साथ में पीती थीं.
समय का चक्र घूमता जा रहा था. राधा युवावस्था में प्रवेश कर चुकी थी. पूजा मेमसाब के सहयोग से शहर के एक अच्छे कालेज मैं उस का दाखिला हो गया था. राधा पढ़ाई में बहुत होनहार थी. इसलिए पूजा ने ममता को आश्वासन दिया था कि राधा जितना पढ़ना चाहे, उसे पढ़ने देना. कालेज की फीस या और किसी भी बात की चिंता करने की उसे जरूरत नहीं है. वह सब देख लेगी. अचानक से ममता खुद को एक बड़ी चिंता से मुक्त होता हुआ महसूस कर रही थी.
पूजा मेमसाब के लिए उस के दिल में इज्जत और बढ़ गई थी. पति की मृत्यु के बाद उस के सगेसंबंधियों ने उस का साथ नहीं दिया था. यहां तक कि उस के मायके वालों ने भी उस से मुंह फेर लिया था. पूजा मेमसाब न होतीं तो वह राधा की परवरिश कैसे करती. यह सब सोच कर प्रकृति का शुक्रिया अदा करते हुए विचार कर रही थी कि पूजा मेमसाब
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