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कारोबारी वार्त्तालाप में उस की वाक्पटुता का लोहा कंपनी के दूसरे अधिकारी भी मानते थे. इसी संबंध में एक विदेशी पार्टी के प्रतिनिधि के साथ सौदा पटाने का काम उसे सौंपा गया. कार्लटन होटल के एक वातानुकूलित शानदार कमरे में मोनिका जिस समय पहुंची, वहां कई लोग पहले से मौजूद थे. सभी भारी गद्दी वाले सोफों में धंसे बैठे हुए थे और उत्कंठा से एक हसीन व तेजतर्रार महिला की एक निगाह के लिए व्यग्र थे तथा बीचबीच में अपने बैग और फोल्डर्स खोल कर विज्ञापन, परचे आदि देखते, सजाते और पेश करने के लिए तैयार कर लेते.मोनिका समझ गई कि यह महिला मिस्टर स्टियक्स बांबेल की सचिव है. मिस्टर बांबेल एक विख्यात जरमन कंपनी के पार्टनर थे, जो कारोबार के लिए कई देशों का दौरा करने के क्रम में भारत आए थे. यह एक अच्छा मौका था उन कंपनियों के लिए, जो अपना माल जरमनी के बाजारों में पहुंचा देने के लिए उत्सुक थे.

महिला का नाम था मिस दवीदो. नाकनक्श बहुत तीखे. बहुत फिट बैठने तथा खूब फबने वाले कपड़े पहने मिस दवीदो बड़ी तेजी से अपने काम को अंजाम दे रही थी. अपनी बारी आने पर मोनिका ने अपनी कंपनी की विनिर्मितियों का सारा विज्ञापन साहित्य मिस दवीदो के सामने सजाते हुए रख दिया. मिस दवीदो एकएक कर के फर्राटे से वे सभी पढ़ती जाती और चमकते नैनों से मोनिका को देखती, सिर हिलाती जाती तथा हंसते या मुसकराते हुए अस्फुट स्वर में ‘चार्मिंग, मार्वेलस’ आदि कहती और बीचबीच में मोनिका के कंधे, पीठ पर हाथ भी थपथपाती जाती. मोनिका केवल मिस दवीदो के स्तर तक ही नहीं अटक जाना चाहती थी. वह उस व्यक्ति बांबेल को भी देखना चाहती थी, जिस की निजी सचिव इतनी खूबसूरत और तेजतर्रार थी. मिस दवीदो जैसे मन की बात पढ़ लेती थी. उस ने पास रखे फोन को उठा कर कुछ सांकेतिक भाषा में बात की, और फोन रखते हुए मोनिका से कहा, ‘‘आप मिस्टर बांबेल से भी मिल सकती हैं.’’ मिस्टर बांबेल का कक्ष छोटा था, पर खूब सजा हुआ था. उस की हर चीज के बेशकीमती होने का एहसास उस कक्ष में घुसते ही होने लगता था. आलीशान मेज और कुरसियां और जाने क्याक्या. सबकुछ आलीशान और उस का स्वयं का व्यक्तित्व भी कम न था. एक ऊंचा कद वाला पुरुष, जिस के अंगप्रत्यंग से आकर्षण की लाली फूटी पड़ती थी तथा चेहरे पर सौम्यता व सहजता थी. उस ने अपना गदीला हाथ मोनिका की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आप से मिल कर बड़ी प्रसन्नता हुई, मिस मोनिका.’’

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