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‘‘मैं पूछती हूं कि आप साफसाफ क्यों नहीं कहते कि आप तलाक चाहते हैं?’’

‘‘मेरा कहना है कि यदि तुम्हें मुक्ति की चाह है तो पूरी मुक्ति पा लो. अभी तो तुम खूंटे से बंधी हुई उस गाय की तरह हो जिस की रस्सी लंबी कर दी गई हो, और जो घूमघाम कर फिर खूंटे पर लौट आती हो. यह खूंटा, चाहे नाम का ही हो, नहीं रहना चाहिए.’’ मोनिका सन्न रह गई. उस की छाती के भीतर एक गोला उठा और गले पर आ कर अटक गया. आंखों के कोने पर जैसे कांटा चुभा, आंसू की बूंद छलकने को हुई कि वह संभल गई. उस ने सूखे स्वर में कहा, ‘‘आप ठीक कहते हैं.’’ दूसरे दिन जब मोनिका औफिस गई तो घर यानी कि डाक्टर सुधीर के मकान पर नहीं लौटी. कमाई उस की अच्छी थी ही, उस ने कामकाजी महिलाओं के होस्टल में एक कमरा ले लिया. परंतु उस के मन में शांति न थी. भीषण प्रतिक्रिया के आवेश में उस का मन अस्थिर रहता. सो, उस से बचने के लिए वह अपने को अधिक व्यस्त रखने लगी. उस ने अपने दफ्तर में ज्यादा जिम्मेदारी और वक्त की मांग करने वाले काम लेने शुरू कर दिए. यह चीज उस की उन्नति की दशा में सार्थक सिद्ध हुई. इस से कंपनी के संचालक वर्ग के बीच उस की प्रतिष्ठा भी बढ़ी.

दफ्तर के घंटे के बाद अपनेअपने घर की तरफ भागने की जल्दी सब को ही रहती है. काम से ज्यादा लदे हुए व्यक्तियों को जरूरी काम पूरे करने के लिए मजबूरन देर तक ठहरना पड़ता है. मोनिका को यदि उन चंद व्यक्तियों में गिना जाए, तब तो ठीक ही है. पर देर से उठने पर भी जहां दूसरे झटपट अपने घर पहुंचना चाहते थे, मोनिका के लिए तब भी कोई जल्दी न होती और तब उस के चेहरे पर एक अव्यक्त उदासी छा जाती. स्त्रियों के होस्टल में अकसर वही स्त्रियां रहती हैं जिन के घर कहीं दूर या

दूसरे शहर में होते हैं और वे नौकरियां इस शहर में करती हैं. अधिक बड़े परिवार की सदस्याएं भी कभीकभी आवास समस्या के कारण होस्टल में आ ठहरती हैं तथा इस प्रकार अपने घर में जगह की तंगी को पूरा करने की चेष्टा करती हैं. इन सब की अपनी मंजिलें हैं, निजी दायरे हैं, सगेसंबंधी हैं. ये सभी होस्टल में रह कर भी एक दूरी से निकटता का अनुभव करते हुए अपनेआप को उन के नजदीक पाती हैं, अपने मांबाप, भाईबहन, बच्चे या पति की बातें करती रहती हैं.

हां, कुछ औरतें उस के होस्टल और दफ्तर, दोनों जगह ही थीं, जो उस के गुट में कुछकुछ फिट बैठ पाती थीं. वे सुशिक्षित कुमारिकाएं, जो विवाह बंधन में अभी तक न बंधी थीं तथा अपने को उन्मुक्त विचारों वाली आधुनिकाएं मानती थीं या फिर वे कार्यकुशल महिलाएं जो निश्ंिचत निर्द्वंद्व हो कर आगे बढ़ना चाहती थीं. परंतु सिद्धांत रूप से वे दोनों भी उस की धारणा के स्तर से नीची ही थीं, क्योंकि आधुनिकाओं का लक्ष्य था, ग्लैमर तथा कैरियर. मोनिका अकसर खीझ उठती थी कि पुरुष की गुलामी में घिसटती हुई यह स्त्री क्या अभी भी मुक्ति की तड़प का अनुभव नहीं कर पा रही है? साजशृंगार कर मर्द को रिझाने या तलवे चाट कर मर्द की खुशामद करने में ही स्त्री जीवन की सार्थकता क्यों मान रही है? कंपनी के कर्मचारियों का अपने बीच ही नहीं, संचालकों के साथ भी काफी सहृदयतापूर्ण व्यवहार था. वे सभी आपस में बड़े सद्भाव से हंसतेबोलते तथा सामाजिक अवसरों पर मिलतेजुलते थे. इसलिए मोनिका का दैनिक जीवन किसी प्रकार की नीरसता से नहीं गुजर रहा था. उसे अकसर कभी चायपार्टी के, कभी भोजन के, किसी के त्योहार के, किसी के उत्सव आदि के निमंत्रण मिलते ही रहते थे. वह उन सब में शरीक भी होती थी.

हरीश के घर में एक ऐसे ही सम्मेलन के मौके पर परिचय के समय हरीश ने जब यह कहा, ‘‘आप, मोनिकाजी हैं, डाक्टर सुधीर की श्रीमती,’’ तो श्रीमती उमा झट से बोलीं, ‘‘वाह, बड़ी खुशी हुई. डाक्टर सुधीर नहीं आए?’’ और मोनिका के कान लाल हो उठे. उस ने कहा, ‘‘क्यों, सिर्फ मेरा आना काफी नहीं है क्या?’’ तब हरीश को अपनी गलती का भान हो गया, तुरंत बात बनाने की कोशिश में बोला, ‘‘क्यों नहीं, इन्होंने तो ऐसे ही पूछ लिया.’’

मोनिका ऊपर से हंसते हुए भी भीतर के तनाव को स्पष्ट करते हुए बोली, ‘‘वह मैं समझती हूं, मिस्टर हरीश. क्या किया जाए, संस्कार ही ऐसे घुसे हैं कि स्त्री का अस्तित्व पुरुष के बिना अधूरा ही माना जाता है.’’कंपनी का एक युवा अधिकारी लोकेश नायक, जो अपनी तत्परता और हंसमुख प्रकृति के कारण बड़ा लोकप्रिय था, टोकते हुए बोला, ‘‘मैं आप के दृष्टिकोण की कद्र करता हूं, मोनिकाजी, बहुत योग्य और अति आधुनिक विचारों वाली स्त्री अपने पैरों पर खड़ी होने के बाद भी, जब अपने व्यक्तित्व को स्वतंत्र नहीं महसूस कर पाती तो यह बात विचारणीय हो जाती है.’’ लोकेश और मोनिका के मतैक्य ने उन के बीच अनायास ही मैत्रीभाव का सृजन कर दिया. दोनों अकसर साथसाथ देखे जाते. कभी दफ्तर में आते समय, कभी जाते समय. कभी लंच के समय, कभी चाय के समय, धीरेधीरे औफिस में ऐसी सामान्य धारणा बन गई कि जिस स्थान पर एक होगा, वहां दूसरे को भी होना चाहिए.

उस दिन सिनेमा के संध्या शो के बाद लोकेश और मोनिका, दोनों कार की सामने वाली सीट पर बैठे जा रहे थे. लोकेश कार चला रहा था. अन्यमनस्क सी मोनिका चुपचाप थी. लोकेश ने उस का मौन भंग करने की एकदो बार कोशिश की, पर वह हूं-हां कर के ही रह गई. जाने किस आवेग के वश लोकेश ने बायां हाथ मोनिका की कमर में डाल कर उसे अपनी ओर खिसका कर सटा लिया.मोनिका ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा. उन दोनों के विषय में बाहर चाहे जिस तरह की अफवाहें जुड़ी हों, पर सच यह था कि संगसंग रहते हुए भी किसी ने दूसरे का स्पर्श कभी न किया था. सो, आज लोकेश ने जब हाथ लगाया तो मोनिका आश्चर्य में आ गई. वह क्रुद्ध तो न हुई, पर असमंजस में पड़ गई.

मोनिका ने धीरे से पूछा, ‘‘घर पहुंचने की जल्दी तो नहीं है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो कार रिट्ज होटल के पोर्च में छोड़ दो. चलो, ऊपर खाना खाएंगे.’’खाना खाते समय मोनिका ने सवाल किया, ‘‘क्या सोच कर आप ने वैसी हरकत की?’’ लोकेश शायद तब तक इस प्रश्न के लिए तैयार हो चुका था, बोला, ‘‘अगर कहूं कि वह तो हमारी बढ़ती हुई घनिष्ठता को व्यक्त करने का एक ढंग है तो?’’

‘‘तो मैं पूछूंगी कि इस प्रकार के कितने ढंग आप को आते हैं?’’ तब लोकेश गड़बड़ा गया. कुछ बोल न सका.

‘‘लोकेशजी, आप मुझ से शादी करेंगे?’’

‘‘मोनिकाजी,’’ लोकेश बेसाख्ता बोल पड़ा.

‘‘क्यों, चौंक क्यों गए?’’ मोनिका ने कहा, ‘‘स्त्रीपुरुष की घनिष्ठता चरम सीमा पर पहुंच कर तो शादी ही बच जाती है न? तो आप करेंगे मुझ से शादी?’’

‘‘पर आप तो पहले से ही शादीशुदा हैं.’’

‘‘आप जानते हैं कि मैं डाक्टर सुधीर से अलग हो चुकी हूं.’’

‘‘कुछ भी हो, मोनिकाजी, पर मैं आप से शादी करने की कल्पना भी नहीं कर सकता.’’

अब मोनिका हंसने लगी, ‘‘क्यों? आप को कोई ताजा माल, कोई नईनवेली चाहिए?’’

‘‘आप मेरा मजाक उड़ा रही हैं,’’ लोकेश क्रोधित हो कर बोला, ‘‘मैं तो केवल आप के वक्त में सहायक होना चाहता हूं. आप ने नारा बुलंद किया है कि ‘पुरुष स्त्री का शोषक है. स्त्री को उस के शोषण से मुक्त होना चाहिए. अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए स्त्री को उस शोषण से मुक्त होना चाहिए.’ अब आप यदि पुरुष की नकल में एक को छोड़ कर दूसरे से, फिर उस के बाद तीसरे या फिर चौथे से विवाह करती हैं, तब तो आप का फिर से उसी परतंत्रता के बंधन में पड़ जाना हुआ, जिस से आप आजाद होना चाहती हैं. स्त्री मुक्ति के सिद्धांत की चरम सीमा क्या यही है? और यही है तो डाक्टर सुधीर में किस बात की कमी थी?’’ मोनिका के दिमाग में लोकेश की बातें बड़ी देर तक झनझनाती रहीं. इस के बाद मोनिका में कुछ परिवर्तन आ गया. ऐसा नहीं कि कंपनी के काम में उस की कुछ रुचि या तत्परता कम हो गई. ऐसा भी नहीं कि लोकेश के साथ उस की घनिष्ठता में कमी आ गई. वास्तविकता यह थी कि कंपनी के कारोबार में उस की अंतर्दृष्टि में और भी तीक्ष्णता आई, जिस के कारण उसे और भी उच्चपद पर प्रतिष्ठित कर दिया गया. लोकेश की मैत्री पूर्ववत थी. हां, उस के व्यवहार में गंभीरता और सदाशयता की मात्रा बढ़ गई थी, तथापि उस के व्यक्तित्व जीवन में असंतोष की छाया बनी रही.

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