शुचि की मम्मी घर के भीतरी भाग से ड्राइंगरूम में आईं तो रवि ने मुझ से उन का भी परिचय कराया लेकिन मुझे उन के मुंह से निकला एक शब्द भी समझ में नहीं आया क्योंकि उन की पत्नी को देखते ही मुझे जबरदस्त झटका लगा था.
हमारी मुलाकात करीब 30 साल बाद हो रही थी पर सीमा को देखते ही मैं ने फौरन पहचान लिया था.
‘‘ये बहुत सुंदर हैं, थैंक यू वेरी मच,’’ सीमा ने मुसकराते हुए मेरे हाथ से गुलदस्ता ले लिया था.
मैं बड़े मशीनी अंदाज में मुसकराते हुए उन के साथ बोल रहा था. उन तीनों में से किसी की बात मुझे पूरी तरह से समझ में नहीं आ रही थी. मन में चल रही जबरदस्त हलचल के कारण मैं खुद को बिलकुल भी सहज नहीं कर पा रहा था.
‘‘क्या आप मम्मी को पहचान पाए, सर?’’ शुचि के इस सवाल को सुन कर मैं बहुत बेचैन हो उठा था.
मुझे जवाब देने की परेशानी से बचाते हुए सीमा ने हंस कर कहा, ‘‘अतीत को याद रखने की फुरसत और दिलचस्पी सब के पास नहीं होती है. कपूर साहब को कुछ याद नहीं होगा पर मैं ने इन्हें पार्क में फौरन पहचान लिया था.’’
‘‘मेरी याददाश्त सचमुच बहुत कमजोर है,’’ मैं ने जवाब हलकेफुलके अंदाज में देना चाहा था पर मेरी आवाज में उदासी के भाव पैदा हो ही गए.
‘‘सीमा कुछ नहीं भूलती है, कपूर साहब. महीनों पहले हुई गलती का ताना देने से यह कभी नहीं चूकती,’’ रवि के इस मजाक पर मेरे अलावा वे तीनों खुल कर हंसे थे.
‘‘महीनों पुरानी न सही पर आप वर्षों पहले हुई गलती तो भुला कर माफ कर देती होंगी?’’ मैं ने पहली बार सीमा की आंखों में देखने का हौसला पैदा कर यह सवाल पूछा.
रवि और शुचि मेरे सवाल पर ठहाका मार कर हंसे पर मैं ने सीमा के चेहरे पर से नजर नहीं हटाई.
‘‘वक्त के साथ नईपुरानी सारी गलतियां खट्टीमीठी यादें बन जाती हैं, कपूर साहब. आप इन की बातों पर ध्यान न देना. पुरानी बातों को याद रख कर अपने या किसी और के मन को दुखी रखना मेरा स्वभाव नहीं है. आप खाने से पहले कुछ ठंडा या गरम लेंगे?’’ सीमा सहज भाव से मुसकराती हुई किचन में जाने को उठ खड़ी हुई थी.
‘‘सीधे खाना ही खाते हैं,’’ मेरा यह जवाब सुन कर वह ड्राइंगरूम से चली गई थी.
मैं उन के घर करीब 2 घंटे रुका था. उन सब की पूरी कोशिश के बावजूद मैं सारे समय खिंचाखिंचा सा ही बना रहा. सीमा की मौजूदगी में मेरे लिए सहज हो पाना संभव भी नहीं था.
‘जिसे प्यार में मैं ने धोखा दिया हो, उस से अचानक सामना होने पर मैं कैसे सहज रह सकता हूं? शुचि को मेरा परिचय बता कर उसे मेरे निकट आने को सीमा ने क्यों प्रोत्साहित किया है? उस ने अपने घर मुझे खाने पर क्यों बुलाया था?’ उस रात ऐसे सवालों से जूझते हुए मैं ने सारी रात करवटें बदलते हुए गुजार दी थी.
अगले दिन मैं पार्क में घूमने नहीं जा सका. शुचि ने फोन किया तो मैं ने तबीयत ठीक न होने का बहाना बना दिया था.
करीब 10 बजे सीमा मुझ से मिलने मेरे घर आई. उस का आना मुझे ज्यादा हैरान नहीं कर सका. शायद मेरे मन को ऐसा होने की उम्मीद रही होगी.
‘‘नहीं, मैं बैठूंगी नहीं. मैं शुचि के बारे में कुछ जरूरी बात करने आई हूं,’’ सीमा की बेचैनी और परेशानी को भांप कर मैं ने बैठने के लिए उस पर जोर नहीं डाला था.
दिल की धड़कनों को काबू में रखने की कोशिश करते हुए मैं खामोशी के साथ उस के आगे बोलने का इंतजार करने लगा.
‘‘नरेश, तुम ने शुचि की एम.बी.ए. की फीस भरने का आश्वासन उसे दिया है?’’ उस ने चिंतित लहजे में सवाल पूछा.
‘‘हां, अगर जरूरत पड़ी तो मैं खुशी से ऐसा कर दूंगा. वह तुम्हारी बेटी है, इस जानकारी ने उसे मेरे दिल के और नजदीक कर दिया है.’’
‘‘मैं शुचि को ले कर काफी चिंतित रहती हूं.’’
‘‘क्यों?’’
कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘वह बहुत महत्त्वाकांक्षी है… उसे किसी भी कीमत पर अमीर बनना है… दुनिया को जीतना है…मेरी बेटी बड़ी ऊंचाइयां छूने के सपने देखती है…वह बिलकुल तुम्हारी तरह है, नरेश.’’
‘‘क्या मेरे जैसा होना बुरा…’’ मैं अपना वाक्य पूरा करने से पहले ही झटके से चुप हो गया था.