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‘‘वाह, एक बाजारू औरत की  इतनी चिंता.’’

‘‘निशा,’’  प्रकाश गुस्से से दहाड़ उठा.

‘‘चिल्लाओ मत और जिस से जो कहना हो, खुद कहना. मैं तो चली चैन की नींद सोने,’’ कह कर निशा बाथरूम की तरफ कपड़े बदलने चली गई और प्रकाश क्रोध व बेबसी का शिकार बना काफी देर तक छटपटाता रहा था.

प्रकाश को दोपहर का खाना खिलाने के बाद ही ज्योति ने उसे बड़े शांत स्वर में बताया, ‘‘आज सुबह आप की माताजी, बड़ी बहन और बड़ी साली मु झ से मिलने यहां आई थीं.’’

‘‘क्या कहा उन लोगों ने तुम से? देखो, मु झ से कुछ छिपाना मत. एकएक बात बताओ मु झे,’’ प्रकाश की आंखों में गुस्से के भाव जाग उठे.

‘‘आप से दूर हो जाने के लिए मु झे धमका रहे थे सब,’’ ज्योति का गला एकाएक भर आया, ‘‘मैं उन्हें कैसे सम झाती कि आप से दूर हो कर मेरे लिए जीना अब असंभव है. अपने  प्रेम के हाथों मैं मजबूर हूं और वे मेरी इस मजबूरी को सम झने को तैयार  नहीं थे.’’

‘‘तुम्हारी मनोदशा को वे तभी सम झ सकते थे जब उन के जीवन में प्रेम की एकाध किरण कभी उतरी होती. मैं उन तीनों को अच्छी तरह जानता हूं. ‘प्रेम’ शब्द का सही अर्थ सम झ पाना उन के लिए असंभव है,’’ प्रकाश ने खिन्न स्वर में अपनी बात कही.

‘‘वे तीनों बहुत गुस्से में थीं. मैं ने उन की बातों का जरा भी बुरा नहीं माना, पर अब वे सब आप के लिए जरूर परेशानियां खड़ी करेंगी, यह सोच कर मेरा दिल बहुत दुखी हो उठता है,’’ कहते हुए ज्योति की आंखों से आंसू बह निकले.

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