निशा ने नफरतभरे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारे सिर से उस कलमुंही के प्यार का भूत उतारने के मेरे पास और भी तरीके हैं. कभी यह उम्मीद न करना कि मैं तुम्हें तलाक दे कर तुम्हें आजाद कर दूंगी. अपनी रखैल की मांग में सिंदूर भरने की खुशी तुम्हें कभी नसीब नहीं होगी.’’
‘‘अपनी इस मजबूरी को मैं सम झता हूं और इसी कारण खून के आंसू रोता हूं. ज्योति को मांग का सिंदूर नहीं, बल्कि मेरा प्रेम चाहिए. तुम न उसे कभी सम झ सकोगी, न कभी उस की बराबरी कर पाओगी.’’
इस वार्त्तालाप के बाद उन दोनों के बीच बड़ी बो िझल खामोशी छा गई थी. प्रकाश उठ कर ज्योति के पास चल दिया.
ज्योति चाय का कप प्रकाश के हाथ में पकड़ाते हुए भावुक लहजे में बोली, ‘‘जब से आए हैं, तब से खोएखोए नजर आ रहे हैं आप? मु झे बताइए, कौन सी उल झन आप के मन को परेशान कर रही है?’’
कुछ पलों की खामोशी के बाद प्रकाश ने संजीदा लहजे में जवाब दिया, ‘‘परसों मेरे बेटे का जन्मदिन है. निशा ने मु झ से कोई सलाह किए बिना उस दिन अपने और मेरे मातापिता व भाईबहनों को पार्टी देने का फैसला किया है.’’
‘‘इस में इतना चिंतित और परेशान होने वाली क्या बात है?’’ ज्योति बोली. ‘‘पिछले कुछ दिनों से निशा का मूड बड़ा अजीब सा हो रहा है.’’ ‘‘अजीब सा? इस का क्या मतलब हुआ?’’
‘‘मन ही मन मु झ से बेहद नाराज होते हुए भी वह बड़ी खामोश रहने लगी है. मु झे साफ एहसास हो रहा है कि मु झे तंग करने के लिए उस का दिमाग किसी योजना को जन्म दे चुका है. जन्मदिन वाली पार्टी में वह जरूर कुछ गुल खिलाने जा रही है,’’ प्रकाश बोला.
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