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जगदीश और सुलभा अभिन्न थे. दोनों एकसाथ स्कूल जाते, खेलते या लड़तेझगड़ते पर एकदूसरे के बिना मानो सुकून न मिलता. प्राइमरी के बाद सुलभा का दाखिला गर्ल्स स्कूल में हो गया था, तो भी कक्षा एक ही होने की वजह से दोनों की पढ़ाई अकसर एकसाथ ही होती. सुलभा पढ़ाई में अच्छी होने के कारण सदा अच्छी रैंक लाती, वहीं जगदीश जैसेतैसे पास हो जाता.

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बचपन में वे एकदूसरे को दीशू और सुली कह कर पुकारते. कालेज जौइन कर लेने के बाद सुलभा ने उसे पूरे नाम से पुकारना शुरू कर दिया था पर जगदीश कभीकभी सुली कह लेता था. वयस्क हो जाने के बाद भी दोनों का दोस्ती वाला व्यवहार और हंसीमजाक कभी किसी को नहीं खटका.

जब वे दोनों हाईस्कूल में थे, तब मौसी ने एक बार सुलभा से कहा था, ‘तू जगदीश को राखी क्यों नहीं बांधती.’ बीच में ही जल्द से बात काट कर जगदीश बोल उठा था, ‘रहने दो बीजी, राखी बांधने के लिए इतनी सारी चचेरी, फुफेरी बहनें क्या कम हैं? सुली तो मेरी दोस्त, सखी है. इसे वही रहने दो.’ दोनों की माताएं हंस पड़ी थीं.

सुलभा ने तब हंस कर कहा था, ‘हां, तुम्हारे जैसे फिसड्डी को भाई बताने में मुझे भी शर्म ही आएगी.’ जगदीश बनावटी गुस्से से उसे मारने उठा तो वह उस की मां के पीछे जा छिपी. मौसी ने उसे लाड़ से थपथपा कर कह दिया, ‘ठीक तो कह रही है, कहां हर साल अव्वल आने वाली हमारी सुलभा बेटी और कहां तुम, पास हो जाओ वही गनीमत.’ वैसे, सुलभा को भी उसे राखी बांधने का खयाल कभी नहीं आया था.

सुलभा के बीए फाइनल में पहुंचते ही उस की दादी ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए उस की शादी के लिए जल्दी करनी शुरू कर दी. उन्होंने इकलौती पोती का कन्यादान करने की ख्वाहिश जाहिर की थी.

सुलभा ने चिढ़ कर कहा था, ‘‘क्या मैं कोई गाय या बछिया हूं जो मेरा दान करेंगी बीजी?’’

‘अरे बेटी, लड़की के ब्याह के लिए यही कहा जाता है न.’

जगदीश ने छेड़ा, ‘देख ली अपनी औकात?’ वह मारने दौड़ी तो जगदीश जबान दिखाते हुए भाग गया.

बीए की परीक्षा होते ही सुलभा की शादी हो गई. हालांकि बाद में उस ने एमए और बीएड भी कर लिया था. 2 बच्चों के जन्म के बाद और पति की तबादले वाली नौकरी के कारण वह अधिक दिनों के लिए मायके न आ पाती, फिर मातापिता के न रहने पर और बच्चों की पढ़ाई के चलते मायके आना और भी कम हो गया.

हालांकि, पड़ोस होने के कारण हर बार आने पर जगदीश और उस

के परिवार से मुलाकात हो ही जाती. जगदीश किसी प्रकार एमए कर के पिता के साथ बिजनैस में लग गया था. मातापिता के न रहने पर अब वही घर का सर्वेसर्वा था. छोटा भाई इंजीनियरिंग की डिगरी ले कर दूसरे शहर में नौकरी कर रहा था. इस बीच जगदीश ने भी शादी कर ली.

एक बार जगदीश की पत्नी उषा ने कहा था, ‘दीदी, आप मुझे भाभी क्यों नहीं कहतीं?’

‘क्योंकि तुम आयु में मुझ से छोटी हो और मुझे दीदी कहती हो. फिर मैं ने जगदीश को भी तो कभी भैया नहीं कहा. पर यदि तुम्हें अच्छा लगता है तो मैं तुम्हें भाभी ही कहा करूंगी, उषा भाभी,’ और मैं हंस पड़ी थी. उषा भी हंस दी पर उस का चेहरा लाल हो आया था मानो उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो. पास बैठा जगदीश बिना कुछ बोले मुंह पर गंभीरता ओढ़े उठ कर चला गया था.

फिर एक दिन उषा ने हंसीहंसी में कहा था, ‘दीदी, आप अपने सखा की गोपियों के बारे में जानती हैं?’

सुलभा जगदीश के रसिक स्वभाव से परिचित थी. अधिकांश लड़़कियां भी उस सुदर्शन युवक से परिचित होने को उत्सुक रहतीं. पर सुलभा ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया था. कुछ आश्चर्य से ही बोली, ‘हां.’

‘आप को बुरा नहीं लगा, आप तो उन की सखी हैं न, उन की राधा’, उषा ने चुटकी लेते हुए कहा.

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