मानसी को झटका लगा. अभी उम्र ही क्या है विभा की. बच्ची है वह. पर इस से पहले कि वह अपना मंतव्य व्यक्त करती, मां ने बात आगे बढ़ा दी, ‘‘विभोर की अभीअभी सरकारी नौकरी पक्की हुई है. अशोकजी, तुम्हारे पापा के पुराने दोस्त हैं, इस खातिर रिश्तों की बाढ़ पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. विभोर सैटल होना चाहता है.’’
मां ने बात जारी रखी, ‘‘विभा की दिलचस्पी पढ़ाई और कैरियर में नहीं है. जबरदस्ती उसे आगे पढ़ने भी नहीं भेज सकते. घर में वह पुस्तकें पढ़ने में, पेंटिंग आदि करने में मग्न है, लेकिन कितने दिन चलेगा? उस की सहेलियों को तो तुम जानती ही हो. कहीं कुछ उलटासीधा न कर बैठे.’’
मानसी को याद हो आए विभा के कालेज के प्रसंग. आए दिन कोई न कोई उसे कुछ न कुछ थमा देता. वैलेंटाइन डे के आसपास तो सारा घर टौफीचौकलेट और अन्य गिफ्टों से भर जाता. कुछ पत्र भी तो थे जो उस ने मानसी को गोपनीयता में दिखाए थे. उन मतवाले आशिकों की ऊटपटांग कविताओं की दोनों बहनों ने मिल कर खाल उधेड़ी थी.
‘‘मैं सम झ रही हूं मां पर इस का यह तो मतलब नहीं कि आप लोग मेरी जिंदगी से खिलवाड़ कर लें,’’ उस ने अपनी बात रखी. ‘‘तू नहीं सम झी रे मानू,’’ मां ने प्यार से फटकारा, ‘‘अगर तु झे वाकई शादी नहीं करनी तो हम विभा की बात चलाएं?’’
मानसी स्तब्ध रह गई. ‘‘अब वह पहले जैसा जमाना तो रहा नहीं कि बड़ीछोटी की शादी सीक्वैंस में ही हो,’’ मां ने चुप्पी तोड़ी. फिर शरारत भरी निगाहों से मानसी को देखते हुए उन्होंने कहा,‘‘वैसे भी मेरी मानसी पूर्णत: आत्मनिर्भर है,’’