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कुछ वक्त बाद वह भारत लौट आई. विदेश की भूमि पर स्वतंत्रतापूर्वक जो जीवन व्यतीत कर आई थी, वह विचार भी अपने साथ ले आई. अपनी यात्राओं पर उस का कई भारतीयों से परिचय हुआ था, जिन से उस का मानसिक जुड़ाव हुआ था और फिर कितनी कौन्फ्रैंस में उस ने भारत आ कर भी भाग लिया था. हर बार मम्मीपापा से मिलने आती और विभाविभोर के लिए तोहफे लाती. जब उन की जिंदगी में अभय और मित्रा ने दस्तक दी, तब बड़ी खुशी के साथ वह उन के लिए भी तोहफे लाने लगी.

अब जब हमेशा के लिए लौट आई है, तो पटना जाने में पहले वाली आतुरता नहीं रही. मन किया कि सब काम निबटा कर, कई दिन आराम से वहां बिताएगी. पिछली बार तब गई थी जब दादी ने संसार से सदा के लिए विदा ले ली थी. यह भी एक वजह थी कि वह जाने में हिचकिचा रही थी. फुरसत पा कर जब घर आई और विभा को वहां देखा तो प्रथम तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा पर जब उसे ज्ञात हुआ कि बच्चों को ले कर विभा माहभर पहले घर आ गई थी तो उस का माथा ठनका.

जब मां से पूछना चाहा तो उन्होंने बगीचे के बीच पेड़ को गहरी, दुखी निगाहों से देखते हुए बस इतना ही कहा था कि, विभा से पूछो तो बेहतर है. रात को खाने के बाद जब दोनों बहनें छत पर गईं और काफी देर मौन बैठी रहीं, तब अचानक मानसी को एहसास हुआ कि विभा कितनी बड़ी हो गई है. ऐसा लगा मानो अभी से अधेड़ हो गई हो.

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