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अपनेअंदर की घुटन को मन में दबा कर मानसी छत पर चली आई. बाहर की ताजा हवा में सब से दूर, वह फिर से सामान्य रूप से सांस ले पा रही थी. उस ने मन ही मन प्रार्थना की कि उस के व्यवहार की विचित्रता पर किसी का ध्यान न जाए. यह लगभग रोज का नाटक हो गया था, विभा आती और सारा परिवार उस के इर्दगिर्द इकट्ठा हो जाता. इस दौरान मानसी बेहद मानसिक यातना से गुजरती थी. ऐसा नहीं कि उसे अपनी छोटी बहन से प्यार नहीं था. बहुत प्यार था उसे विभा से पर परिस्थिति ही कुछ ऐसी हो गई थी कि अपनी बहन को देखते ही उस का मन खिन्न हो उठता. ‘यह फैसला भी तो तुम्हारा ही था. अब उस पर पछताने से क्या होगा?’’ उस के मन ने उसे दुत्कारा और उस की आंखों के सामने वह शाम पुन: सजीव हो उठी, जो इन घटनाओं की गवाह थीं.

एमए के प्रथम वर्ष की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण करने के उपरांत बड़ी उमंगों के साथ घर आई थी छुट्टियां मनाने. सिविल सर्विस या लैक्चररशिप के बीच जू झ रही थी. यों तो उस का मन बचपन से ही सिविल सर्विस में जाने का था, पर जैसेजैसे उस की निकटता साहित्य से बढ़ी और बीए के बाद एक अस्थायी शिक्षक के रूप में उस ने जिस सुख का अनुभव किया था, उस के परिणामस्वरूप उस का  झुकाव लैक्चररशिप की ओर अधिक होता गया. बच्चों को किसी सुंदर पंक्ति से परिचित कराने के साथसाथ उन में किसी जीवनमूल्य को निविष्ट करना उसे एक अनूठे रोमांच से भर देता था. घर आई थी तो सोचा था परिवार वालों का परामर्श लेगी पर उसे आए एक दिन भी कहां बीता था कि उस के सामने विभोर के रिश्ते का प्रस्ताव रख दिया गया. प्रस्ताव क्या था, आदेश ही तो था. मम्मी खुश होहो कर तसवीरें दिखा रही थीं और दादी जन्मपत्री के मिलान की व्याख्या कर रही थीं.

इस अचानक हुए वज्रपात पर उस का संपूर्ण अंतर्मन आतंकित हो उठा था. लगा जैसे सांस लेना ही मुश्किल हो जाएगा. कितनी कठिनाई से मुंह से निकला था ‘न.’ उस के इस एक धीमे से निकले शब्दों ने घर को सन्नाटे में डुबो दिया था. पापा ने बात संभालने की कोशिश की थी, ‘‘मेरे बचपन का दोस्त है अशोक. उस का लड़का है विभोर.’’

उसे पता था कि हाल ही में उस के पापा ने फेसबुक के माध्यम से अपने पुराने दोस्तों से पुन: संपर्क स्थापित किया था. स्वयं उस ने ही तो इतने उत्साह से उन की सहायता की थी. उसे क्या पता था कि स्वयं अपने लिए ही गड्ढा खोद रही है. अभी तो उसे आगे पढ़ना है, विदेश से फैलोशिप करनी है… इतना कुछ है करने को. ऐसे में वह अपने सपनों की बलि चढ़ा अपना जीवन घरगृहस्थी में कैसे निछावर कर सकती है?

वह ‘नहींनहीं’ की माला जपने लगी. विभा ने ही तो उसे  झक झोर कर उस की तंद्रा भंग की थी. शाम को खाना खाते हुए इस बारे में सिर्फ विभा ने इतना भर कहा था, ‘‘शादी ही तो है? इतनी कौन सी बड़ी आफत आन पड़ी है तुम पर? लड़का भी तो कितना अच्छा है. पापा भी वादा कर आए हैं. तुम न होती बीच में तो मैं ही शादी कर लेती.’’ दादी ने उसे डपट कर चुप तो करा दिया पर मानसी ने गौर किया कि मां ने पापा को गहरी निगाहों से ताका.

अगले दिन शांत माहौल में सुबहसुबह मां ने फिर वही बात छेड़ी थी. मानसी ने एक ठंडी सांस ली. कल रात उस ने उन्हें अपनी योजनाओं से अवगत कराया था. अभी उसे आगे पढ़ना है, अपना कैरियर बनाना है. शादी के बाद ये सब कैसे संभव होगा? उस के मम्मीपापा ने हमेशा उस का उत्साहवर्धन किया. उसे परिस्थितियां दीं कि वह अपने हिसाब से जी सके, फिर आज जब उस के जीवन के इतने महत्त्वपूर्ण फैसले पर बात आई तो वे अपना निर्णय उस पर थोपना चाहते हैं, यह कैसा न्याय हुआ?

‘‘बेटा, तेरी पढ़ाईलिखाई से किसी को कोई दिक्कत थोड़े ही है,’’ मां ने बड़े प्यार से उसे सम झाना चाहा पर उस ने बीच में उन की बात काट दी, ‘‘होनी भी नहीं चाहिए. पर बात यह नहीं है मां. तुम ने शादी के बाद पढ़ाई करी है, मैं जानती हूं लेकिन मैं तुम जैसी नहीं हूं मां, जो घर में, पति में, बच्चों में ही अपने संसार को पा ले… मैं न तो पढ़ाई में मन लगा पाऊंगी न ही घर में. यह तो सभी के साथ अन्याय होगा न?’’

मां कुछ वक्त शांत रहीं. उन्होंने कहा कुछ नहीं, लेकिन उन के भावों से ऐसा भी नहीं लगा कि वे मायूस या दुखी हैं. उन्हें पता है कि मानसी अत्यंत महत्त्वाकांक्षी लड़की है. उस का सपना अपने पैरों पर खड़े होना है और वे उस की दृढ़ता की और निष्ठा की कायल भी हैं. बचपन से ही उन की बड़ी बेटी का मन न कभी बननेसंवरने में लगा, न ही उस की कोई खास दोस्ती रही है. सारा ध्यान उस ने अपने व्यक्तित्व को निखारने में ही लगाया है.

एक अंतराल के बाद बगीचे के बीचोंबीच लगे आम के पेड़ पर निगाह टिकाए ,उन्होंने उसे बताया, ‘‘विभा ने बीए के बाद आगे पढ़ने से मना कर दिया है.’’ मानसी चौंकी. उसे लगा मां उसे फिर से मनाने का प्रयास करेंगी. फिर उस ने मां के कहे शब्दों पर गौर किया. आगे नहीं पढ़ेगी? फिर क्या करेगी? नौकरी करेगी? कोई और कोर्स जौइन करेगी? मां ने उस के चेहरे पर तैरते प्रश्नों को हमेशा की तरह सही ताड़ा, ‘‘तुम तो जानती हो कि उस का मन नौकरी करने का कभी नहीं था.’’

सच ही तो कह रही हैं मां. विभा उस के एकदम विपरीत रही है. पढ़ाई तो जैसेतैसे कर ली पर नौकरी वह नहीं  करेगी. कहती है कि अपनी लाइफ सोशलाइजिंग में स्पैंड करेगी और फिर थोड़ाबहुत सोशल वर्क भी कर लेगी. यु नो फौर गुडविल.’ मानसी ने हंसते हुए अपना सिर हिलाया. उस की बहन में कभी परिपक्वता आएगी भी या नहीं?

‘‘विभा शादी के लिए तैयार है. सोचा था तेरी शादी के बाद उस की शादी तुरंत कर देंगे,’’ मां ने सीधेसीधे बोल दिया.

 

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