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लेखिका- डा. के रानी 

‘‘मम्मी प्लीज, मैं कोई बच्ची नहीं हूं. 16 साल की हो गई हूं. मु?ो भी अपने भलेबुरे की पहचान है.’’ ‘‘जानती हूं, फिर भी मैं कुछ मामलों में बिलकुल रिस्क नहीं उठा सकती.’ ‘‘इस में रिस्क की क्या बात है? हम सब आपस में रिश्तेदार हैं.’’

‘‘तुम नहीं सम?ाती अनन्या. बस, मेरी बात मान लो. मैं जानती हूं कि तुम्हें यह सब देखसुन कर बुरा लगता है, फिर भी इस से आगे कुछ मत कहो और इस टौपिक को यहीं खत्म कर दो.’’

अपना सामान व्यवस्थित कर के वह राशि दी के पास चली गई. राशि दी एकएक कर के उसे शादी का सामान दिखा रही थीं और अनन्या उस पर अपनी टिप्पणियां दे रही थी. उस के बाद वह ईशा के साथ आ गई.

खाना खाने के बहुत देर बाद अनन्या मम्मी के पास आई. हिना उस समय राशि के साथ बातें कर रही थी. बातें तो एक बहाना था. दरअसल, वह उसी के आने का इंतजार कर रही थी. दोनों कमरे में आ कर कुछ देर बातें करती रहीं और फिर आराम से सो गईं.

अगले दिन सुबह से ही मेहमानों का आनाजाना शुरू हो गया था. राशि दी के परिवार में यह पहली शादी थी. सारे रिश्तेदार शादी में शामिल होने सपरिवार आए थे. बूआ, मौसी, चाचा, ताऊ और छोटे दादाजी सब अपने परिवार के साथ पहुंच गए थे. घर पर रिश्तेदारों का मेला लग गया था. सभी के बच्चे जवान थे. कुछ की शादी हो चुकी थी और उन के साथ छोटे बच्चे भी आए हुए थे. यह सब देख कर राशि दी बहुत खुश थीं. वे खुद भी बहुत व्यवहारकुशल थीं. हरेक के सुखदुख में शामिल होने वे सब से पहले पहुंच जातीं. इसी वजह से सभी लोग ईशा की शादी में एक दिन पहले ही पहुंच गए थे.

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