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लेखिका- डा. के रानी 

‘‘तु?ो क्या हो गया है हिना? कैसी बातें कर रही है. शेखर सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’‘‘सोचता है तो सोचने दो. मु?ो किसी की परवा नहीं है,’’ इतना कह कर उस ने बीच के दरवाजे पर कुंडी चढ़ा दी. हिना को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ कहने पर भी मम्मी आंखें मूंदें थीं और उस के इशारे नहीं सम?ा रही थीं. हिना सबकुछ जानते हुए भी चुप थी, इसीलिए उस की हिम्मत ज्यादा बढ़ गई.

बीच का दरवाजा बंद हो जाने से शेखर की उम्मीदों पर पानी फिर गया. एक बच्चे का पिता होने के बावजूद उस की गंदी नजर अपनी बूआ की बेटी हिना पर पता नहीं कब से लगी थी. अकसर वह उस के लिए गिफ्ट ले आता और उस के साथ खुल कर बातें करता. उसे याद आ रहा था कि वे उसे अजीब तरीके से छूते.

‘‘अगर वह उन के बहकावे में आ जाती तो...’’ यह सोच कर वह सिहर गई. लोकलाज के कारण उसे पता नहीं क्या कुछ ?ोलना पड़ता. मम्मी अपने भतीजे पर कभी शक तक नहीं कर सकीं. अब शेखर को खुद वहां रहना अखरने लगा था. हिना की निगाहों में उठने वाली नफरत को ?ोलने में वह समर्थ नहीं था. उस ने इस बीच कई बार उस से बात करने की कोशिश की. उस के पास आते ही वह चुपचाप वहां से उठ कर चली जाती.

हफ्तेभर बाद शेखर अपने पापा के घर चला गया था. इस घटना से हिना ने महसूस किया कि बाहर वालों से ज्यादा अपने लोग खतरनाक होते हैं. रिश्तों की आड़ में क्या कुछ कर गुजरते हैं, इस का किसी को एहसास तक नहीं होता. वे जानते हैं कि अपनों को बदनामी से बचाने व ?ाठी शान के लिए इस समाज में औरत की आवाज हर हाल में दबा दी जाएगी.

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