लेखक-डा. आर एस खरे
इंस्पैक्टर का फोन सुनते ही उस के चेहरे की रंगत फीकी पड़ गई. दिल जोरजोर से धड़कने लगा और माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं. सुबह 11बजे उसे लोकायुक्त में बुलाया गया था. इंस्पैक्टर ने लोकेशन भी समझा दी थी- ‘जिला न्यायालय के ठीक अपोजिट वाली नई बिल्डिंग में लोकायुक्त कार्यालय है.’
वह जिला न्यायालय के सामने से सैकड़ों बार गुजरा था पर उस का ध्यान कभी लोकायुक्त कार्यालय पर नहीं गया था. 11बजने के कुछ मिनट पहले ही वह उस नई बिल्डिंग के सामने खड़ा था. बिल्डिंग के ऊपर एक बोर्ड लगा था- 'आर्थिक अपराध अनुसंधान कार्यालय'. उस ने बिल्डिंग से निकल रहे खाकी वरदीधारी से पूछा, "लोकायुक्त का दफ्तर कहां है?"
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सिपाही ने बताया कि वह इसी बिल्डिंग के गेट नंबर 2 पर जाए. पीछे की ओर जाने पर गेट नंबर 2 के ऊपर दूर से ही 'लोकायुक्त कार्यालय' का बोर्ड दिखाई दे गया. लिफ्ट के पास जा कर वह रुका. इंस्पैक्टर ने कहा था कि उसे थर्डफ्लोर पर आना है. जब काफी देर तक लिफ्ट में कोई हलचल न हुई, तो उस का ध्यान लिफ्ट के प्रवेशद्वार के ऊपर चस्पां कागज के टुकड़े पर गया, जिस पर किसी ने पेन से लिख दिया था- ‘लिफ्ट बंद है.’
हाई ब्लडप्रैशर का मरीज होने के कारण सीढ़ियां चढ़ते हुए उस की सांस फूलने लगी. रेलिंग के सहारे चढ़ता हुआ वह तीसरी मंजिल पर पहुंचा. गेट पर खड़े गार्ड ने रजिस्टर में उस से प्रविष्टियां कराईं- नाम, पता, मोबाइल नंबर तथा किस से मिलना है.'
उस ने गार्ड से पूछा, "इंस्पैक्टर अशोक यादव कहां बैठते हैं?" गार्ड ने उसे हाथ के इशारे से मार्गदर्शन दिया. अब वह इंस्पैक्टर अशोक यादव की टेबल के सामने था. टेबल पर फाइलें बेतरतीब पड़ी थीं. इंस्पैक्टर की कुरसी खाली थी. कुरसी के पीछे दीवाल पर टाइप किया कागज चस्पां था- ‘आप गोपनीय कैमरे की निगरानी में हैं.’