‘‘दादी, यह सती रानी का मंदिर है. कहते हैं ये अपने पति को बहुत प्यार करती थीं, उन के जाने का गम नहीं सह पाईं, इसलिए उन के साथ सती हो गईं. पर क्या एक औरत की अपने पति से अलग कोई दुनिया नहीं होती, यह तो आत्मदाह ही हुआ न? ’’ कहते हुए उस ने फोन पर यह सोच कर रिकौर्डिंग करनी प्रारंभ कर दी कि शायद इस घटना से संबंधित कोई सूत्र उसे मिल जाए.
वृद्धा कुछ क्षण के लिए उसे देखती रही, फिर कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारा प्रश्न जायज है पर मर्द के लिए औरत सिर्फ औरत है. मर्द ही उसे कभी पत्नी बनाता है तो कभी मां, यहां तक कि सती भी. इस संसार की जननी होते हुए भी स्त्री सदा अपनों के हाथों ही छली गई है.’’
‘‘आप क्या कहना चाहती हैं, दादी?’’
‘‘मैं सच कह रही हूं बिटिया, लगता है तुम इस गांव में नई आई हो?’’
‘‘हां दादी, प्यार अलग बात है, पर मुझे विश्वास ही नहीं होता कि कोई औरत अपनी मरजी से अपनी जान दे सकती है.’’
‘‘तू ठीक कह रही है, बेटी. मैं तुझे सचाई बताऊंगी पर पता नहीं तू भी औरों की तरह बात पर विश्वास करेगी या नहीं. मेरी बात पर किसी ने भी विश्वास नहीं किया, बल्कि पगली कह कर लोग सदा मेरा तिरस्कार ही करते रहे. सती रानी और कोई नहीं, मेरी अपनी बेटी सीता है.’’
‘‘आप की बेटी सीता?’’आश्चर्य से छवि ने कहा.
‘‘हां बेटी, मेरी बेटी, सीता. पिछले 40 वर्षों से मैं इसे न्याय दिलवाने के लिए भटक रही हूं पर कोई मेरी बात पर विश्वास ही नहीं करता. इस के पति वीरेंद्र प्रताप सिंह की मृत्यु एक बीमारी में हो गई थी. उस समय यह पेट से थी. उस समय उस के जेठ को लगा भाई तो गया ही, अब दूसरे घर की यह लड़की उन की सारी संपत्ति में हिस्सा मांगेगी, इसलिए बलपूर्वक इसे अपने भाई की चिता के साथ जलने को मजबूर कर दिया. इस बात की खबर उस घर में काम करने वाली नौकरानी ने हमें दी थी. हम ने जब अपनी बात ठाकुर के सामने रखी तो वे आगबबूला हो गया. हम ने गांव वालों के सामने अपनी बात रखी तब ठाकुर के डर से किसी गांव वाले ने हमारा समर्थन नहीं किया. और तो और, नौकरानी भी अपनी बात से मुकर गई. जब मेरे पति और बेटे ने ठाकु र को देख लेने की धमकी दी तब ठाकुर ने न केवल मेरे पति बल्कि मेरे बेटे को भी अपने गुंडों के हाथों मरवा दिया. सबकुछ समाप्त हो गया बेटी.’’
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