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लेखक-मनोज शर्मा

जानते हो, एक रोज जब परीक्षा आरंभ होने वाली थी, मैं ने एक प्रश्न के डाउट्स के लिए मैडम को रात में फोन लगा दिया. उस समय 8 बजे थे. उन्होंने कहा कि तुम एक मर्तबा घर आ सकते हो.

मैं ने क्यों पूछा, तो उन का जवाब था कि इस टौपिक पर उन के पास कुछ किताबें व नोट्स हैं, जिन की सहायता से यह टौपिक अच्छे से क्लीयर हो सकता है. मैं ने बिना सोचे देर ना लगाई और प्रोमिला मैडम के यहां पहुंच गया. पर ये क्या...?

बोलतेबोलते वह रुक गया.

मैं उसे देखता रहा. उस की आंखें खुली थीं एक अजीब उत्साह से (चूंकि अब तक उसे भी ये सब अच्छा लगने लगा था) बताता रहा. ना जाने क्यों उस रोज उन का घर पर बुला लेना मुझे अच्छा लग रहा था. शायद एक ओर उन का मेरे प्रति, मेरी शिक्षा के प्रति इतनी परवाह. एक अनजाने शहर में मुझ जैसे मुफलिस स्टूडैंट को कोई इतनी तरजीह दे. घर बुला कर इज्जत दे, किताबें दे और कठिन टौपिक को समझाने में सहायता करे.

मेरे लिए एक अच्छा मौका था कि मैं परीक्षा से पूर्व इस टौपिक को गहराई से जान सकूं.

मैं ने देर न लगाते हुए उन के घर का रुख किया. उन का दरवाजा खुला. वे बालों को जूड़े में बांधते हुए सामने आईं. मुझे लगा कि उन के पति घर पर होंगे. मैं हलकी मुसकराहाट के साथ घर के अंदर घुसा, पर अंदर शायद कोई नहीं था, क्योंकि घर में कोई आहट नहीं थी.

डायनिंग टेबल की कुरसी निकाल कर उन्होंने मेरी ओर बढ़ा दी और सामने वाली कुरसी पर वो स्वयं बैठ गई. पिंक गाउन में वे उस रोज ज्यादा ही खिल रही थीं. उस से पहले मैं ने इस तरह उन्हें कभी नहीं देखा था. मैंने पूछा, ‘‘सर नहीं हैं क्या?’’

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