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नाथू जी ने ध्यान दिया कि जो बालकनियां वीरान थीं वहां लोग आ कर उन्हें ही घूरने लगे. थोड़ी ही देर में जो दोचार बालकनियां खाली थीं वहां भी लोग आ गए थे और सभी की निगाहें उन्हीं की तरफ थीं. नाथू ने साची से कहा, “चलोअंदर चलते हैं.” “पर क्योंअभी तो बाहर आप ने ही बुलाया थाफिर अचानक अंदर क्यों?”

दरअसलधूप थोड़ी ज़्यादा तेज़ है न.”“कोई धूप तेज़ नहीं हैमैं सब समझती हूं. हम ने कोई गुनाह नहीं किया. अपनी सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने के बाद यदि अपने लिएअपनी खुशी के लिए जीने की कोशिश की तो क्या गुनाह कियालोगों के बारे में सोचना छोड़ दीजिए.

अच्छाअभी घर में चलोइस विषय में बाद में सोचते हैं,” ऐसा कह कर नाथू ने पत्नी का हाथ पकड़ कर घर में चलने का इशारा किया तो साची ने उन के कंधे पर सिर टिका दिया. नाथू को अच्छा तो लगा पर वे जिस दुनियादारी से डर कर उसे घर में बुला रहे थेउसी का तमाशा बन गया. वे चाह कर भी साची से कुछ कह नहीं पाए.

साची के इज़हार में यही बेबाकीपनखुलापननाथू जी को भा गया था. उन्हें याद आया कि पहली बार जब साची उन के औफिस में आई थीउस का बातोंबातों में कहकहे लगानाहंसते हुए बालों को पीछे फेंकने का अंदाज़ उन के वर्षों से संन्यासी मन को आसक्त कर गया पर दुनियादारी को देखते हुए उन्होंने अपने मन को समझा लिया था. वे इंश्योरैंस कंपनी में ऊंचे पद पर काम करते थे. वहीं उन की मुलाकात साची से हुई. साची अपनी सभी जमापूंजी इकट्ठा कर के अपनी बेटियों के पास अमेरिका जाना चाहती थी. काम के सिलसिले में कई बार मुलाकात हुई तो नाथू जी का मन  किया कि एक बार ही सही वे साची से कहें अवश्य कि इस प्रकार सबकुछ समेट कर बेटियों के पास जाना ठीक नहीं. अपना देशअपना घर अपना ही होता है पर न जाने क्यों कह नहीं पाए.

एक दिन सुबह से नाथू जी का मन बहुत खुश था. सफेद वाली शर्ट पहनी. फिर न जाने क्या सोच कर उसे उतार कर हलके नीले रंग की शर्ट पहन ली. परफ्यूम लगाया. फिर लगा कि कुछ कम हैसो दोबारा छिड़का और गुनगुनाते हुए चल दिए. आज साची को आना था. हर आहट पर उन का दिल धड़क उठता था. कई बार उन्हें अपनी बेचैनी पर गुस्सा भी आता कि आखिर इस उम्र में यह उतावलापनलोग क्या सोचेंगेसुप्रभा की मृत्यु के बाद मां ने न जाने कितनी बार जिद किया कि वे दूसरी शादी कर लेंबच्चे अभी छोटे हैंकौन इन की देखभाल करेगाकैसे अकेले जिंदगी कटेगी वगैरहवगैरह. हर बार नाथू हंस कर टाल जाते. जिस सुप्रभा से उन्होंने टूट कर प्यार किया थाउस की जगह किसी और स्त्री के बारे में कभी सोच ही नहीं पाए. बसबच्चों को सुप्रभा की अमानत मान उन पर अपना सारा प्यार लुटाते रहे. माताजी के रहने के कारण कभी कोई चिंता ही नहीं हुई. माताजी भी बच्चों के साथसाथ नाथू का पहले से ज़्यादा खयाल करने लगीं.

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