अचानक चपरासी ने आ कर कहा, ‘साहब, बाहर एक मैडम आई हैं.’‘जल्दी भेजो,’ कह कर उन्होंने गला ठीक किया. आसपास की रखी चीज़ों को ठीक किया. घबराहट में पानीपिया, तभी दरवाज़ा खुला. उन की धड़कन और तेज़ हो गई पर सामने एक अन्य महिला को देख कर न जाने क्यों बुरा लगा क्योंकि उन्हें तो साची का इंतजार था. खैर, अपने को संयत कर के उन्होंने उन महिला को बुला कर बैठाया और आने का कारण पूछा. काम खत्म हो जाने पर जब वे चली गईं तब उन्होंने अपने दिल को टटोला और पाया कि हां उन्हें साची का ही इंतज़ार था और साची के विदेश जाने के फैसले से उन्हें तकलीफ भी हो रही थी. इंतजार करतेकरते जब शाम हो गई तो निराशा ने घेर लिया.
दूसरे दिन औफिस में अपने कमरे में फाइलों में उलझे थे कि औफिस का दरवाज़ा खुला और खुशबू से कमरा भर गया. उन्होंने सिर उठाया तो सामने साची खड़ी मुसकरा रही थी.‘क्या कर रहे हैं जनाब, आखिर कब तक फाइलों में उलझे रहेंगे? अरे, एक असिस्टैंट रख लीजिए. काम आसान हो जाएगा.‘कहां ढूंढूं? हो जाता है काम. हां, इसी बहाने थोड़ा और समय कट जाता है. मुझे कौन घर जाने की जल्दी है.’
‘क्यों, क्या घर में पत्नी और बच्चे नहीं हैं?’‘नहीं, 18 वर्ष पहले मेरी पत्नी हमें बच्चों के साथ छोड़ कर दूसरी दुनिया में चली गईं.’‘ओह, सौरी. क्या बेटे साथ नहीं रहते?’‘नहीं, एक पूना में है और बड़ा वाला सिंगापुर में.’
थोड़ी देर तक साची चुपचाप बैठी रही, फिर थोड़ा गंभीर हो कर बोली, ‘इस का मतलब आप की हालत मेरे जैसी ही है. मेरे पति भी 8 साल पहले बच्चों को मेरे सहारे छोड़ कर उसी दुनिया में चले गए जहां जाने के बाद कोई वापस नहीं आता. बस, यादों के सहारे जिंदगी काटनी होती है.