फिर उठ कर बड़की बैठकी के दरवाजे तक आ कर झांक आई कि कहीं कोई कान लगा कर न सुनता हो, फिर पास बैठ कर फुसफुसाई, ‘‘यह जो मझला पुलिस में है, उस की बीवी तो अपनेआप को घर में दारोगा से कम नहीं समझती. गालीगलौज और मारपीट सब हो चुकी है उस की अम्मा से. हमारे पिताजी जल्दी चले गए वरना वे सुधार कर रखते सब को.’’ फिर इधरउधर नजरें घुमाईं.
उस ने देखा बड़े भाई के खर्राटे गूंजने लगे हैं, तो फिर अपनी आवाज का सुर थोड़ा बढ़ा कर बोली, ‘‘छोटे बेटे से तो ज्यादा ही लगाव रहा अम्मा का. हर समय ‘छोटा है, अभी सुधर जाएगा’ कहती रहीं. मगर हुआ क्या? शादी करते ही सब से पहले उस ने अपनी गृहस्थी अलग कर ली. मझली को अम्मा ने ही अलग कर दिया था वही रोजरोज की मारपीट, धमकियों से तंग आ कर. बड़ी साथ में रही भी तो इतने खुरपेंच जानती थी कि रोटी का एक निवाला तोड़ना दूभर हो गया था अम्मा का. फिर तो खुद ही अपनी रसोई अलग कर ली अम्मा ने.’’
‘‘हां, मुझे सब पता है. तभी तो मैं ने भगवती को समझाया था कि तू बेटी के घर चली जा रहने को, उसे ही खर्चापानी देती रहना. तभी तो वह कुछ महीने के लिए तेरे घर चली गई थी,’’ लीला बोली.
‘‘अरे, वहां भी मन न लगा अम्मा का, हर समय यही कहें ‘एकएक ईंट जोड़ कर घर बनाया. आज मैं कुत्ते की तरह दूसरे की ड्योढ़ी पर पड़ी हूं.’ वहां से भी लौट आईं,’’ बड़की ने सफाई पेश की. तभी दीनानाथ कमरे में दाखिल हुआ. तो बड़की बड़े प्रेम से बोली, ‘‘चाची, तुम लोग अभी बैठो, मैं जरा भाइयों के लिए फल काट कर ले आऊं. इन्हें तो 12 दिनों तक एक समय ही भोजन करना है.’’
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन