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‘‘कैसी मूर्खतापूर्ण बातें कर रहे हो तुम, स्वरूप?’’

‘‘मैं गंभीरतापूर्वक कह रहा हूं.’’

‘‘स्वरूप, मालती पर तुम्हारी यह आसक्ति भावनात्मक अपरिपक्वता है. तुम एक अवसर का अनुचित लाभ उठा रहे हो. पर जिसे तुम लाभ समझ रहे हो, उस से दोहरी हानि हो रही है. एक तरफ तुम अपनी अविवाहिता साली की जिंदगी बरबाद कर रहे हो, दूसरी तरफ तुम अपने सुखी वैवाहिक जीवन को नष्ट करने पर तुले हो. स्वरूप, मेरा विश्वास करो, इस खेल में हानि ही हानि है, लाभ कुछ नहीं.’’

‘‘तुम्हें मेरे व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.’’

‘‘स्वरूप, मैं तुम्हारा अभिन्न मित्र हूं. आज से नहीं, पिछले 20 वर्षों से. मैं अपनी मित्रता की सौगंध खा कर कहता हूं कि तुम जो कुछ कर रहे हो, उस के दूरगामी दुष्परिणाम निकलेंगे.’’

‘‘देखा जाएगा.’’

‘‘तब कहीं बहुत देर न हो जाए.’’

स्वरूप के मुख पर कड़वाहट के चिह्न उभर आए और वह अपना रजिस्टर उठाता हुआ बोला, ‘‘इस समय तो मुझे क्लास में जाने के लिए देर हो रही है. क्षमा करना.’’ मैं ठगा सा, स्वरूप को स्टाफरूम के दरवाजे से बाहर जाते देखता रह गया. अगले दिन मेरी सिर्फ एक क्लास थी. मैं सवा 11 बजे खाली हो गया. स्वरूप शाम 3 बजे तक व्यस्त था. यों उस के स्वतंत्र या व्यस्त होने से मुझे कोई अंतर नहीं पड़ने वाला था. मैं पिछले दिन के कटु अनुभव के संदर्भ में स्वरूप से भेंट करने से कतराता रहा. जिस व्यक्ति की विचारधारा एकदम एकांगी हो जाए और जो संकीर्ण पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हो, उस से विचारविनिमय करना मूर्खता ही है. पर पिछली 2 रातों से मैं सो नहीं पाया था. माला और स्वरूप के सुखी जीवन और मधुर संबंधों के बिखरने की विभीषिका मुझे कहीं बहुत गहराई तक कचोट गई थी. मैं बड़ी उत्कंठा से माला भाभी के मेरठ से लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था.

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