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हेमा को तरुण में अपना गुलाम नजर आया. एक जीहुजूरी करने वाला उस के शरीर और खूबसूरती पर मोहित वह लड़का, जो खुद ही हेमा का काम कर खुद को धन्य महसूस करे. बदले में हेमा उसे पढ़ाई में कई तरह से मदद कर देती. इस लेनीदेनी में दूसरे छात्र भी तरुण को भाव देने लगे.

गांव से आ कर 2 गज के बायज मेस में रह कर हाथपांव मारने वाले लड़के को अगर इतना मिल जाए, तो उस के सपने जमीन से कोंपल बन कर फूट ही पड़ेंगे. हेमा के घर में लड़कियों का राज था. भाई अभी 9वी जमात में था, और पापामम्मा की लाड़ली हेमा के लिए दुनिया उस की मुट्ठी में थी.

एक बार हेमा के आदेशानुसार तरुण उसे लोकल ट्रेन से उस के मामा की बेटी के जन्मदिन में लेबकर चला. लोकल ट्रेन में आसपास बैठे ठेलतेधकियाते लोगों के बीच समयसंजोग से हेमा और तरुण एकदम एकदूसरे से चिपकने को बाध्य हो गए.

ट्रेन से उतरते वक्त हेमा ने तरुण को कस कर पकड़ रखा था.तरुण ने हेमा के मामा का पता पूछा और हेमा उसे सीधे होटल के कमरे में ले जा कर बिस्तर पर खींच लिया.हेमा के सौंदर्य को देख वह सबकुछ विस्मृत हो गया. गांव, गोबर, भैंस, गाय, खेत, कीचड़ भुखमरी, मजदूरी, पढ़ाई और उम्मीद से भरी गांव में इंतजार करती उस की परिवार की आंखें… सब कुछ… बस दिखती थीं गगनचुंबी पहाड़ें… ढलान को उतरती वेगमती वासना की ज्वारें और शाम की बेला की यह मधुचांदनी.

यहां से निकल कर जैसेतैसे वे मामा के घर रस्म भरपाई को पहुंचे, और वापसी में मामा की गाड़ी में उन के ड्राइवर  की आंख बचा कर और उसे आगे अनदेखा कर पीछे की सीट पर दोनों फिर से एकदूसरे में व्यस्त रहे.2 साल जातेजाते हेमा की बैंक में नौकरी लग चुकी थी, लेकिन तरुण अभी भी कोशिश पर कोशिश किए जा रहा था. वह तनाव में रहता. हेमा कहीं और न शादी कर ले. हेमा के साथ बनाए उस के संबंध उस के लिए अटूट हो गए थे.

हेमा को वैसे तरुण की नौकरी की कोई परवाह नहीं थी. इसलिए नहीं कि वह तरुण को हर हाल में अपना लेती, उसे तो तरुण की ही कोई फिक्र नहीं थी. जो बीत गई सो बात गई. कुछ दिन तरुण के साथ रिश्ता बना, तो इस का मतलब हेमा के लिए यह कतई नहीं था कि वह जन्मभर के लिए उस के साथ बंध जाए, लेकिन तरुण के लिए हेमा के साथ का हर पल सच्चा और स्थाई था. उस के अंदर की सचाई की आग ने उस में इतना जुनून भर दिया कि वह एक सरकारी बैंक में चयनित हो गया.

इस से उसे 2 फायदे हुए. एक तो घर वालों की गरीबी दूर करने को उस के हाथ मजबूत हुए वहीं दूसरे हेमा के पिता से हेमा के बारे में सीधे बात कर लेने की उस में हिम्मत आ गई.हेमा के नानुकुर के बावजूद तरुण जैसे मेहनती सीधेसादे और सर्वदा हाथ बांधे रहने वाले लड़के को हेमा के पिता ने हेमा के वर के रूप में चुन लेने में अपनी और हेमा की भलाई ही समझी.

हेमा के पिता बेटी की ऊंची नाक और उस के नखरे को जानते थे. आगे गृहस्थी चलाने में तरुण जैसा युवक ही हेमा से निभा लेगा, यह दूरदर्शिता इन की शादी की मुख्य वजह बनी.शादी के बाद तरुण जितना ही खुद को आईने में देखता, हेमा को पा कर वह अपनी दसों उंगलियां घी में डूबा पाता. सारे दोस्त उस से रश्क करते. इतनी खूबसूरत, स्मार्ट बीवी, जिस की आमदनी भी तरुण से ज्यादा है, शादी में बैंक के पास पौश कालोनी में डुप्लेक्स के साथ उस की जिंदगी में आई है.

2 साल तक यानी जब तक तरुण को उस की कमाई के पैसे उस के गांव अपने पापा के पास भेजने पर हेमा की ओर से खास रोक नहीं लगाई गई, तरुण को लगता था, वह अपनी औकात से ज्यादा ही पा गया है. लेकिन धीरेधीरे हेमा का तरुण के पैसे पर हक और शिकंजा कसने लगा, तब तरुण करवट ले कर बैठा.

हालांकि उस ने घर भेजे जाने वाले रुपयों में कोई कटौती की तो नहीं, लेकिन हेमा के तानों पर उस के दिल में विष उतर जाता.सच मुहब्बत इतना आसान नहीं था, यह आग का दरिया था, और तरुण अकेला इस में हाथपांव मार रहा था.समय के साथ तरुण को हेमा का बिंदास स्वभाव, स्वार्थी सोच बहुत खलता, लेकिन अब वह ओज और ओम 2 बेटों का सिर्फ पिता ही नहीं, सेवा और प्यार की छांव देने वाला मां जैसा भी था.

कभीकभी वह महसूस करता, जैसे हेमा का तरुण के प्रति कोई प्रतिबद्धता भी न हो, और यह सिर्फ तरुण के अकेले की ही जवाबदारी हो. लेकिन वह अब बच्चों के लिए अपना मुंह बंद ही रखता.सालभर हो रहे थे, असम की गुवाहाटी से प्रभास नाम के बैंक मैनेजर हेमा के औफिस में आए थे, जिसे ले कर तरुण के विचार संदेह के घेरे में थे. मगर इस मामले में भी वह कुछ कहने लायक स्थिति में नहीं था. मजाल था कि हेमा के बारे में तरुण कोई शिकायत कर ले. सब का फिर तो वह जीना ही मुश्किल कर दे.

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