कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

"मैं किसी के नजर में आने न दूंगी, लेकिन यह चिट्ठी तुम्हारी जबान की निशानी है. मुझे इसे संभालना ही पड़ेगा, बच्चा तुम्हारी जिद पर ला रही हूं, तो तुम्हारी 'हां' मेरे पास होनी चाहिए प्रभास. "मुझे माफ करना,अपनी और बच्चे की सुरक्षा के लिए यह है."

"यह प्रेम था? हेमा ऐसे ही नाकाबिल रिश्ते के लायक थी. छी:..." तरुण बोल कर चिट्ठी एक किनारे फेंक चुपचाप पलंग पर बैठ गया. मेघना के अंदर धुआं भरता जा रहा था. सालों से धोखे का खेल... और वह घर और बच्चियों में खुद को होम कर चुकी. प्रभास कितना बुरा बरताव करता रहा उस के साथ, और वह खुद को दिलासा देती रही कि पति काम के बोझ से परेशान है.

तरुण ने चुप्पी तोड़ी, "बेटी का नाम 'तमन्ना' यानी प्रभास की तमन्ना. मैं और अच्छा इनसान नहीं बन सकता. मैं बच्ची को देखते ही हेमा की बेवफाई ही याद करूंगा. कैसे पालूंगा दीदी इस बच्ची को? इस धोखे की निशानी को... बच्ची मेरे साथ खुश नहीं रह पाएगी दीदी.

तरुण अचानक फूटफूट कर रो पड़ा. मेघना ने उस के सिर पर हाथ रखा और कहा, "तुम चिंता न करो तरुण. प्रभास कल ही कह रहा था कि वह बेटी को तुम से ले लेगा, और मुझे तुम लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखने देगा. "अगर बच्ची यहां रही, तो मुझे देखभाल के लिए आना ही पड़ेगा, और प्रभास मुझे रोकेगा.

"अच्छा है कि मैं ही बच्ची को ले जाऊं. मेरी ममता भेद नहीं करेगी. मुझे तो प्रभास के बुरे स्वभाव की आदत ऐसे भी पड़ ही चुकी थी, सीने पर एक पत्थर और सही. "मैं बच्ची को ले जाती हूं, प्रभास की हकीकत को उसे बताने की जरूरत नहीं. उस की सजा यही है कि वह खुशफहमी में ही जिए. वक्त उसे क्या सजा देना चाहता है, मैं देखना चाहती हूं."

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...