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"रास्ते में कोई दिक्कत तो नहीं हुई."समर ने सामान संभालते हुए कहा और जवाब का इंतजार किए बिना ही घर में घुस गया. पापा गाड़ी के पास ही खड़े थे, एक अजीब सा संकोच घर कर गया था. पहले की बात और थी पर अब… "चलिए न पापा आप यहां क्यों खड़े हैं..."

समर मुसकराते हुए घर से बाहर निकले, अपूर्वा ने राहत की सांस ली. घर में एक गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था. चौके में कुछ खटरपटर हो रही थी. शायद खाना बनाने वाली आ गई थी. अपूर्वा साधनाजी को हर कमरे में ढूंढ़ आई थी पर पता नहीं वे कहां थीं. समर पापा के साथ बैठक में बैठे हुए थे.अपूर्वा ने जल्दी से हाथमुंह धुले और सब के लिए पानी लेने के लिए चौके में घुसी.

 

"मम्मी,आप यहां...सुनीता कहां है?आप हटिए मैं करती हूं." "सुनीता राशन लेने गई है, तेरे पापा के लिए बिना चीनी वाली चाय अलग बना दी. ये पकौड़ियां ठंडी हो जाएंगी, तुम ले कर जाओ. मैं चाय ले कर आती हूं." अपूर्वा आश्चर्य से मम्मीजी को देख रही थी. क्या मम्मीजी को बात समझ में आ गई थी? उन्हें पापा का यहां रहने पर कोई आपत्ति नहीं थी या फिर यस तूफान से पहले की शांति थी? बैठक में समर और पापा इधरउधर की बातें कर रहे थे. अपूर्वा नाश्ता लेकर पहुंची,"यह लीजिए गरमगरम पकौड़ी."

 

पापा वैसे ही निर्विकार से बैठे हुए थे अचानक वे खड़े हो गए,"नमस्ते भाभी जी." साधनाजी तब तक चाय ले कर आ गई थीं. सब लोग अपनी जगह से खड़े हो गए. साधनाजी ने गरदन हिला कर पापा का अभिवादन स्वीकार कर लिया. "मम्मी, बैठिए न आप भी चाय पीजिए."

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