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अपूर्वा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अजयजी बोल पड़े,"बेटा, अब इस उम्र में कुछ पचता नहीं है,"अजयजी ने नजरें चुराते हुए कहा. अपूर्वा जानती थी कि झूठ बोलना पापा के बस की बात नहीं. आज से 1 महीने पहले तक मां पापा के लिए उन की पसंद की हर चीज बनाती थीं.कभी आलू के परांठे, कभी सैंडविच, कभी कटलेट...फैमिली डाक्टर ने कई बार कहा,"अंकलजी, पौष्टिक खाना खाया करिए ओट्स, कौर्नफ्लैक्स, दलिया..." और अजयजी हर बार उन की बात हंसी में उड़ा देते.

"यह मरीजों का खाना खाना मेरे बस की बात नहीं, कभी मेरी पत्नी के हाथ का खाना खा कर देखिए सब भूल जाएंगे."जिस आदमी को मां ने जीतेजी एक गिलास पानी नहीं उठाने दिया आज वे...अपूर्वा का दिल छलनी हो गया.

"पापा, 1 मिनट आप का हाथ…""अरे, कुछ नहीं बताया तो था कल वह चाय बनाते वक्त थोड़ी छलक गई थी. कुछ नहीं 2 दिन में ठीक हो जाएगी."अजयजी ने अपने हाथ को पीछे छिपाने की कोशिश की पर अपूर्वा ने जबरदस्ती उन के हाथ को खींच कर आगे कर लिया. वे दर्द से कराह उठे. चेहरे पर दर्द की टीस उभर आई.उन के हाथों में बड़ेबड़े फफोले देख कर उस की आंखें भर आईं. दाढ़ी बनाते वक्त एक हलकी सी खरोंच लग जाने पर पूरा घर सिर पर उठा लेने वाले अजयजी आज दर्द के साथ जीना सीख रहे थे. अपूर्वा ध्यान से उन के चेहरे पर दर्द की लकीरों को पढ़ने की कोशिश करती रही. उस दर्द को पढ़ने के आगे वर्षों की पढ़ाई और डिग्रियां भी फेल हो गई थीं. अपूर्वा को बारबार लगता कि मां अभी किसी कमरे से बाहर निकलेंगी और बोलेंगी,"देख रही अप्पू, तेरे पापा अपना हाथ जला बैठे,:कितनी बार समझाया था कि कुछ काम करना सीख लीजिए, काम ही देगा. कल को बीमार पड़ गई या मुझे कुछ हो गया तो 1 कप चाय को तरस जाएंगे."

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