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"मन तो बहुत है दीदी पर अंकलजी को छोड़ कर कैसे जाऊं. आंटीजी थीं तो बात कुछ और थी पर अब…"अपूर्वा ने कमला के हाथों को अपने हाथों में लिया और नोटों का पुलिंदा उस के हाथों में रख दिया. कमला आश्चर्य से अपूर्वा का मुंह देख रही थी.

"दीदी, आप पैसे क्यों दे रही और वह भी इतने सारे, अभी तो महीना भी पूरा नहीं हुआ. अंकलजी है न वे दे देंगे."अपूर्वा बड़ी देर तक चुपचाप खड़ी रही, कमला समझ नहीं पा रही थी कि आखिर अपूर्वा करना क्या चाहती है."कमला, मैं पापा को यहां अकेले नहीं छोड़ सकती, पूरी रात मम्मी की तसवीर की तरफ ही देखते रहते हैं. मेरे सिवा उन का है ही कौन? तुम मेरी एक मदद करेगी."

"बोलो दीदी...?""जब पापा सो कर उठें तो उन से अपनी मां की तबीयत का बहाना कर के महीनेभर के लिए तुम गांव चली जाओ. मैं पापा को किसी तरह भी मना कर अपने साथ ले कर चली जाऊंगी,"कहतेकहते अपूर्वा का गला भर आया. कमला की आंखें भी डबडबा गईं. अपने आंचल से अपूर्वा के आंसू पोंछते हुए कमला ने कहा,"दीदी, आप जरा भी चिंता न करो, खुशीखुशी अपने पापा को अपने घर ले जाओ. तुम्हारी जैसी बिटिया कुदरत सब को दें."

अपूर्वा के चेहरे पर खुशी की लहर आ गई. एक जंग तो वह जीत चुकी थी अब दूसरी जंग की तैयारी करनी थी. कमला ने योजना के अनुसार वैसा ही किया,पापा कमला के 1 महीने गांव जाने की बात सुन कर सोच में पड़ गए पर कमला की मां की बीमारी की बात सुन कर वे ज्यादा कुछ न बोल पाए. अपूर्वा ने उन के चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी देखी. अपूर्वा भी तो अपने घर जाएगी फिर उन का खानापीना... उन्हें तो चाय के सिवा कुछ बनाने भी नहीं आता. अपूर्वा सबकुछ चुपचाप देख रही थी. उस दिन पूरी रात उन की आंखों में पश्चाताप में ही गुजरी.

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