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अचानक उन की निगाहें घड़ी पर गईं. रात के 9 बज रहे थे. अभी तक स्वरा नहीं आई थी. उन की बेचैनी बढ़ने लगी थी. वह कभी भी देररात तक घर से बाहर नहीं रहती. यदि देर से आना होता था तो वह मैसेज जरूर कर देती थी. वे परेशान हो कर अपने कमरे से बाहर आ कर बरामदे में चहलकदमी करने लगे. तभी उन के फोन की घंटी बज उठी. उस तरफ बेटी स्वरा की घबराई हुई आवाज थी, ‘‘पापा, मेरी गाड़ी का ऐक्सिडैंट…’’ उस के बाद किसी दूसरे आदमी ने फोन ले कर कहा, ‘‘हम लोग इसे अस्पताल ले कर जा रहे हैं. खून बहुत तेजी से बह रहा है, आप तुरंत पहुंचिए.’’ यह खबर सुनते ही केशव अपना होश खो बैठे. यह सब उन के अपने कर्मों का फल था. जब उन के पास पैसा नहीं था तो वे ज्यादा खुश थे. कितने अच्छे दिन थे, उन का छोटा सा परिवार था. वे अपने अतीत में खो गए.

वे थे और थी उन की अम्मा. पिताजी बचपन में ही उन का साथ छोड़ गए थे. अम्मा ने कपड़े सिलसिल कर उन को बड़ा किया. अम्मा ने अपने दम पर उन को पढ़ायालिखाया. उन की नौकरी लगते ही अम्मा को उन के विवाह की सूझी. छोटी उम्र में ही उन की शादी कर दी. पत्नी कनकलता सुंदर और साथ में समझदार भी थी. उन की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी. छोटी सी तनख्वाह में हर समय पैसे की किचकिच से वे परेशान रहते थे. फिर भी जब अम्मा शाम को गरमगरम रोटियां सेंक कर खिलाती थीं तो वे कितनी संतुष्टि महसूस करते थे. परंतु उन की पैसे की हवस ने उन के हाथ से उन की सारी खुशियां छीन लीं. बचपन से ही उन्हें पैसा कमाने की धुन थी. जब वे बहुत छोटे थे तो लौटरी का टिकट खरीदा करते थे. एक बार उन का 1 लाख रुपए का इनाम भी निकला था. दिनरात पैसा कमाने की नित नई तरकीबें उन के दिमाग में घूमती रहती थीं. एक दिन अखबार में उन्होंने एक चलती हुई फैक्टरी के बहुत कम कीमत में बिकने का विज्ञापन पढ़ा. उन्होंने मन ही मन उस फैक्टरी को हर सूरत में खरीदने का निश्चय कर लिया.

स्वरा का जन्म हो चुका था. खर्च चलाना बहुत मुश्किल हो गया था. उन्होंने फैक्टरी खरीदने के लिए अम्मा को घर बेचने पर मजबूर कर दिया. अम्मा बेटे की जिद और जबरदस्ती देख, सकते में थीं.

वे रोती हुई बोली थीं, ‘लल्ला, हम रहेंगे कहां?’ ‘अम्मा, कुछ दिनों की ही तो बात है, मैं आप को बहुत बड़ी कोठी खरीद कर दूंगा. यह मेरा वादा है आप से.’ अम्मा ने सिसकते हुए बहती आंखों से कागज पर दस्तखत कर दिए थे. लेकिन अपने नालायक बेटे की शक्ल से उस समय उन्हें नफरत हो रही थी. अपनी मजबूरी पर वे रातदिन आंसू बहाती थीं. घर खाली करते समय वे अपने घर को अपनी सूनी, पथराई आंखों से घंटों निहारती रही थीं. घर बिकने के सदमे से अम्मा उबर नहीं पा रही थीं. वे न तो ढंग से खाती थीं, न किसी से बात करती थीं. बस, हर समय चुपचाप आंसू बहाती रहती थीं.

एक दिन पड़ोस की मंगला मौसी,  जोकि अम्मा की बहन जैसी थीं,  उन से मिलने आईं, ‘क्या कर रही हो, बहन?’ आंसू पोंछते हुए अम्मा बोलीं, ‘कुछ नहीं मंगला, इस घर में मेरा बिलकुल भी मन नहीं लग रहा है. मुझे यहां अच्छा नहीं लगता. वहां सब लोग कैसे हैं?’ ‘सब अपनीअपनी दालरोटी में लगे हुए हैं. हां, हम चारधाम की यात्रा पर जा रहे हैं.’

अम्मा लहक कर बोलीं, ‘चारधाम, मेरे तो सब धाम यहीं हैं. अब तो मर कर ही घर से निकलेंगे.’ ‘अपने लोगों की तो सारी जिंदगी बेटाबेटी और चूल्हेचौके में बीत गई. कुछ कभी अपने बारे में भी सोचोगी?’

‘तीर्थयात्रा में जाने का तो बहुत मन है, लेकिन क्या करूं, स्वरा अभी छोटी है. नई जगह है. अकेली बहू को छोड़ कर कैसे जाऊं?’ ‘मैं तो चारधाम यात्रा वाली सरकारी बस से यात्रा पर जा रही हूं. किसी तरह रोतेधोते, हायहाय कर के यह जिंदगी बिताई है. कुछ ज्यादा नहीं कर सकती तो चारधाम की यात्रा ही कर आऊं.’

‘बहुत अच्छा सोचा है, बहन.’

‘मेरी तो आवर्ती जमा की एक स्कीम पूरी हुई थी. उस के 4 हजार रुपए मिले थे. एक हजार रुपए कम पड़ रहे थे तो रंजीत से कहा. उस ने मुंह बनाया लेकिन बहू अच्छी है, उस ने रंजीत से कहसुन कर दिलवा दिया. अब वह मेरे जाने की तैयारी में लगी हुई है.’ अम्मा उत्सुक हो कर बोलीं, ‘कब जाना है?’

‘अभी तो जाने में एक महीना बाकी है. लेकिन बुकिंग तो अभी से करवानी पड़ेगी. जब पूरी सीटें भर जाएंगी तभी तो बस जाएगी.’ तभी बहू कनकलता चाय ले कर अंदर आई तो अम्मा उसे सुनाते हुए बोलीं, मैं भला कैसे जा पाऊंगी, बिटिया छोटी है. केशव को रातदिन अपनी फैक्टरी के सिवा किसी बात से मतलब नहीं है. बहू को छोड़ कर मैं नहीं जाऊंगी.’

‘बहन, तुम भी खूब हो इस उम्र में तीर्थयात्रा पर नहीं जाओगी तो कब जाओगी, जब हाथपैर बेकार हो जाएंगे? बिस्तर पर लेटेलेटे सोचती रहना कि सब मन की मन में ही रह गई. हम ने सब का किया लेकिन अपने लिए कुछ न कर पाए. रुपए तो तुम ने भी जोड़ कर रखे ही होंगे. काहे को किसी के आगे हाथ पसारो. चेन की ओर इशारा करती हुई वह बोली, गले में सोने की जंजीर न पहनोगी तो कुछ बिगड़ थोड़े ही जाएगा. फिर तुम्हारा जैसा मन हो, वैसा करो. लेकिन जीवन में मौके बारबार नहीं मिलते.’ ‘अरे नहीं, तुम ने बहुत अच्छा किया जो मुझे बता दिया. तीर्थयात्रा पर तो जाने का मेरा भी मन कब से है. लेकिन कोई बात नहीं, भविष्य में कभी जाएंगे.’ ड्राइवर की आवाज से केशव की

विचारशृंखला भंग हुई. वे वर्तमान में लौटते ही स्वरा स्वरा पुकारने लगे. इमरजैंसी वार्ड के बाहर स्वरा को चहलकदमी करता देख उन के कलेजे में ठंडक पड़ी. उन्होंने दौड़ कर स्वरा को सीने से लगा लिया. उन की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

‘‘बेटी, तुम्हें ठीक देख मेरी जान में जान आई. वह तो कह रहा था, खून बहुत बह रहा था.’’

‘‘पापा, राधे काका के सिर में चोट आई है. उन की हालत सीरियस है.’’ वे तेजी से दौड़ कर डाक्टर के पास गए और उस का अच्छा से अच्छा इलाज करने को कहा. राधे की पत्नी और बेटे को सांत्वना देते हुए बोले, ‘‘तुम लोगों को घबराने को जरूरत नहीं है. मैं ने डाक्टर से बात कर ली है. मैं इन का अच्छा से अच्छा इलाज करवाऊंगा. तुम लोगों का घरखर्च के लिए रुपए घर पर पहुंच जाएंगे. इस के सिवा तुम्हें आधी रात को भी कोई जरूरत हो तो निसंकोच मुझे फोन करना.’’

‘‘मालिक, आप की कृपा है,’’ रोती हुई राधे की पत्नी बोली थी. अब केशव स्वरा की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘बेटी, तुम्हें फोन कर के अपनी कुशलता की खबर देनी चाहिए थी कि नहीं? ऐक्सिडैंट शब्द सुनते ही मेरे तो प्राण सूख गए थे.’’

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