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‘डियर डैड, गुड मौर्निंग. यह रही आप के लिए ग्रीन टी. आप रेडी हैं मौर्निंग वौक के लिए?’’

‘‘यस, माई डियर डौटर.’’ वह दीवार पर निगाह गड़ाए हुए बोली, ‘‘डैड, यह पेंटिंग कब लगवाई? पहले तो यहां शायद बच्चों वाली कोई पेंटिंग थी.’’

‘‘हां, यह कल ही लगाई है. मैं पिछली बार जब मुंबई गया था तो वहां की आर्ट गैलरी से इसे खरीदा था. क्यों, अच्छी नहीं है क्या?’’

‘बेबस आंखें’ टाइटल मन ही मन पढ़ती हुई वह बोली, ‘‘डैड, आप की कंपनी का ‘लोगो’ भी आंखें है और अब कमरे में इतनी बड़ी पेंटिंग भी खरीद कर लगा ली है. आंखों के साथ कोई खास घटना जुड़ी है क्या?’’ केशव के हाथ जूते के फीते बांधते हुए कांप उठे थे. उन्होंने अपने को संभालते हुए बात बदली, ‘‘स्वरा, तुम विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी हो, अब आगे तुम्हारा क्या इरादा है?’’

‘‘डैड, क्या बात है? आप की तबीयत तो ठीक है न. आज आप के चेहरे पर रोज जैसी ताजगी नहीं दिख रही है. पहले मैं आप का ब्लडप्रैशर चैक करूंगी. उस के बाद घूमने चलेंगे.’’

स्वरा ने डैड का ब्लडप्रैशर चैक किया और बोली, ‘‘ब्लडप्रैशर तो आप का बिलकुल नौर्मल है, फिर क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं, आज तुम्हारी दादी की पुण्यतिथि है, इसलिए उन की याद आ गई.’’

‘‘डैड, आप दादी को बहुत प्यार करते थे?’’

धीमी आवाज में ‘हां’ कहते हुए उन की अंतरात्मा कांप उठी. वे किस मुंह से अपनी बेटी को अपनी सचाई बताएं. उन्होंने फिर बात बदलते हुए कहा, ‘‘तुम ने बताया नहीं कि आगे तुम्हें क्या करना है?’’

‘‘डैड, मैं सोच रही हूं कि आप का औफिस जौइन कर लूं’’ केशव ने प्रसन्नता के अतिरेक में बेटी को गले से लगा लिया, ‘‘मैं बहुत खुश हूं जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली.’’

‘‘डैड, आज कुछ खास है?’’

‘‘हां, सुबह 8 बजे हवन और शांतिपाठ. फिर अनाथाश्रम में बच्चों को भोजन व कपड़े बांटना. दोपहर 2 बजे वृद्धाश्रम के नए भवन का उद्घाटन और वहां पर तुम्हारी दादी की मूर्ति का अनावरण. आई हौस्पिटल में कंपनी की ओर से निशुल्क मोतियाबिंद का औपरेशन शिविर लगवाया गया है. शाम 6 बजे औफिस में दादी की स्मृति में जो बुकलैट बनाई गई है उस का वितरण और सभी कर्मचारियों के लिए बोनस की घोषणा. तुम साथ रहोगी न?’’

‘‘यस पापा, क्यों नहीं? मैं दिनभर आप के साथ रहूंगी.’’

‘‘थैंक्स, बेटा.’’

केशव जिस काम में हाथ लगाते हैं, सोना बरसने लगता है. देशभर में उन का व्यापार फैला हुआ है. 20-22 वर्ष के व्यवसायिक दौर में वे देश की जानीमानी हस्ती बन गए हैं. उन्होंने अपना बिजनैस अपनी मां भगवती देवी के नाम पर भगवती स्टील, भगवती फैब्रिक्स, भगवती रियल एस्टेट आदि क्षेत्रों में फैलाया हुआ है. शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने अपना हाथ आजमाया है. ‘भगवती मैनेजमैंट इंस्टिट्यूट’ देश में उच्च श्रेणी में गिना जाता है. दिनभर के व्यस्त कार्यक्रम के बाद केशव रात में जब बैड पर लेटे तो सोचने लगे कि स्वरा को कंपनी जौइन करने के अवसर को वे किस तरह से भव्य बनाएं. फ्रांस के साथ ब्यूटी प्रोडक्ट्स की एक डीड फाइनल स्टेज पर थी. उन्होंने मन ही मन स्वरा फैशन एवं ब्यूटी प्रोडक्ट्स लौंच करने का निश्चय किया. अब उन का मन हलका हो गया था. उन्होंने नींद की गोली खाई और सो गए.

अगली सुबह औफिस पहुंचते ही उन्होंने अपनी सैक्रेटरी जया को बुलाया, ‘‘मेरे आज के अपौइंटमैंट्स बताओ.’’ ‘‘सर, सुबह 10 बजे औफिस के नए प्रोजैक्ट का डिमौंस्ट्रेशन देखना और उस पर बातचीत करनी है. 2 बजे फ्रैंच डैलिगेशन के साथ नई कंपनी को ले कर अपनी मीटिंग है. डीड फाइनल स्टेज पर है. शाम 7 बजे सरकारी अफसरों के साथ मीटिंग है.’’ वे दिनभर काम में लगे रहे. शाम को 6 बजे वे थका हुआ महसूस करने लगे. उन्होंने डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने हाई ब्लडप्रैशर होने की वजह से उन्हें घर पर आराम करने की सलाह दी. वे मीटिंग कैंसिल कर के उदास व मायूस चेहरे के साथ घर पहुंचे. आज वे समय से पहले घर पहुंच गए थे. आलीशान महल जैसी कोठी में नौकरों की भीड़ तो थी परंतु उन का अपना कहने वाला कोई नहीं था. बेटा अंबर अब 22 वर्ष का हो चुका था. दाढ़ीमूंछें आ गई हैं, परंतु उसे छोटे बच्चों सी हरकत करते देख केशव मन ही मन रो पड़ते हैं. वह कौपीपैंसिल ले कर पापापापा लिखता रहता है. वह सहमासिकुड़ा, बड़े से आलीशान कमरे के एक कोने में बैठा हुआ या तो टीवी देखता रहता है या कौपी में पैन से कुछकुछ लिखता रहता है. जब कभी वे उस के खाने के समय पर आ जाते हैं तो डाइनिंग टेबल पर उन को देख कर मुसकरा कर वह खुशी जाहिर करता है.

जिस बेटे के पैदा होने पर उन्होंने घरघर लड्डू बांटे थे उसी बेटे को अपनी आंखों से देख कर वे पलपल मरते हैं और जिस तकलीफदेह पीड़ा से वे गुजरते हैं, यह उन का दिल ही जानता है. दुनिया की दृष्टि में वे सफलतम व्यक्ति हैं परंतु सबकुछ होते हुए भी वे अंदर से हर क्षण आंसू बहाते हैं. पत्नी कनकलता और बेटे अंबर के लिए उन्होंने क्या नहीं किया. परंतु उन के हाथ कुछ नहीं लगा. मांस के लोथड़े जैसे बेटे को गोद में ले कर कनकलता सदमे की शिकार हो गई. एक ओर पत्नी को पड़ने वाले लंबेलंबे दौरे, दूसरी ओर मैंटली रिटार्डेड बच्चा और साथ में बढ़ता हुआ बिजनैस. गरीबी की मार को झेले हुए केशव ने पैसे को प्राथमिकता देते हुए अपने बिजनैस पर ध्यान केंद्रित किया. लेकिन आज अथाह धन होते हुए भी संसार में वे अपने को अकेला महसूस कर रहे थे. बेटी स्वरा ही उन की जिंदगी थी. उस को देखते ही उन्हें पत्नी कनकलता का चेहरा याद आ जाता. वह हूबहू अपनी मां पर गई थी.

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