एअरइंडिया का विमान मुंबई एअरपोर्ट पर था. यह मुंबई से दिल्ली की उड़ान थी. वर्किंग डे होने की वजह से अधिकांश सीटें फुल थीं. विमान की रवानगी के कुछ समय पूर्व ही स्वाति ने गौरव के साथ विमान में प्रवेश किया. विमान परिचारिका व्हीलचेयर धकेल रही थी, स्वाति उस का साथ दे रही थी. गौरव व्हीलचेयर पर बैठा था. हैंडसम, गोरेचिट्टे गौरव के चेहरे पर परेशानी के भाव थे. साफ लग रहा था कि वह तनाव में है.
स्वाति ने परिचारिका की सहायता से गौरव को विमान की सीट पर बैठाया और धन्यवाद दिया. उस ने अपने हाथ में थमा सामान रैक में रखा. जैसे ही उस की नजरें अपने से 2 सीट पीछे गई, वह चौंक पड़ी.
उस सीट पर अनंत बैठा था. अकेला नहीं बैठा था. उस की बगल में एक नवविवाहित लगने वाली युवती भी थी. वह अनंत से बातें कर रही थी. उसे देख अवाक रह गई स्वाति.
यह कैसे हुआ? अनंत की बगल में युवती यानी अनंत की शादी हो गई? अनेक सवाल कौंध गए उस के मनमस्तिष्क में. वह धम्म से अपनी सीट पर बैठ गई. माथा चकरा गया उस का.
‘‘क्या हुआ स्वाति?’’ गौरव ने परेशान भाव से पूछा, ‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ स्वाति की अचानक ऐसी हालत देख गौरव ने पूछा.
वह कुछ नहीं बोली, तो गौरव ने उसे झकझोरा, ‘‘क्या हुआ, ठीक तो हो?’’
‘‘हांहां ठीक हूं. बस थोड़ा सिर चकरा गया था,’’ स्वाति ने सामान्य होते हुए कहा.
स्वाति की अनंत से शादी हुई थी. यह उन दिनों की बात है, जब उस ने कालेज से बीए किया ही था. गजब की खूबसूरत स्वाति न केवल आकर्षक तीखे नैननक्श वाली थी, बल्कि कुशाग्रबुद्धि भी थी.
मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी स्वाति 5 बहनों में सब से छोटी थी. चंचल स्वभाव की स्वाति परिवार में सब की लाड़ली थी. बीए अंतिम वर्ष में थी कि उस के पापा का देहांत हो गया. उस की उम्र यही कोई 21 वर्ष के करीब थी. 4 बेटियों की शादी करतेकरते स्वाति के पापा वक्त से पहले ही बूढ़े हो गए थे. इधरउधर से कर्ज ले कर बेटियों को ब्याहा तो स्वाति की शादी से पहले ही चल बसे.
पति का साथ देती आ रही स्वाति की मां ने अपने पति की मौत के बाद चारपाई पकड़ ली. अब चारों बहनों को इस बात की चिंता हुई कि मां भी साथ छोड़ गईं तो स्वाति का क्या होगा? उसे कौन संभालेगा? अत: बहनों ने मिल कर तय किया कि मां के रहते हुए स्वाति के हाथ पीले कर दिए जाएं. पर अच्छे घरपरिवार का लड़का मिले तब न.
कई रिश्ते आए, लेकिन भाई कितने हैं, बाप…? के सवाल पर लड़के वाले खिसक जाते. अगर कोई इन सब हालात से भी समझौता कर लेता तो सवाल आता कि शादी में कितना पैसा खर्च करोगे?
खर्च के नाम पर तो कुछ था ही नहीं, उन के पास.
बहनों की ससुराल में भी ऐसा कुछ नहीं था कि सब मिल कर शादी में खर्च लायक मदद कर सकें.
स्वाति कहती, ‘‘दीदी, आप लोग मेरी टैंशन न लो. अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है?’’
एक दिन स्वाति के लिए मुंबई से बहुत बड़े उद्योगपति घराने से रिश्ता आया. स्वाति के रिश्ते की मौसी का लड़का सुशांत मुंबई से यह रिश्ता ले कर दिल्ली आया.
‘‘मौसी, बहुत बड़ा घराना है. यों समझो राज करेगी स्वाति. घर में कितने नौकरचाकर, रुपया, धनदौलत, ऐशोआराम है कि आप सोच भी नहीं सकतीं,’’ सुशांत ने स्वाति की मां से कहा तो उन की आंखों में चमक आ गई.
‘‘हां, मौसी, बिलकुल सच.’’
‘‘तो बेटा इतने बड़े घर का रिश्ता… हमारे घर…’’ मां ने सुशांत से पूछा.
‘‘सब बहुत अच्छा है मौसी, बस एक छोटी सी कमी है…’’
सुशांत अपनी बात पूरी करता उस से पहले ही स्वाति की मां ने उत्सुकतापूर्वक पूछा, ‘‘वह क्या बेटा? कोई बीमारी है लड़के को या कोई ऐब…’’ मां ने पूछा.
‘‘नहीं मौसी, ऐसी कोई खास बीमारी नहीं. बचपन में लड़के के एक पांव में तकलीफ हो गई थी. पर मौसी इस का इलाज जल्दी होने लगेगा अमेरिका में,’’ सुशांत ने एक स्वर में अपनी बात कही.
‘‘पर बेटा अगर ठीक नहीं हुआ तो?’’ मां ने पूछा.
‘‘अरे मौसी, अरबों रुपए हैं उन के पास. कोई छोटामोटा घर नहीं है. इलाज पर पानी की तरह पैसा बहा देंगे. उन की अमेरिका के किसी बड़े डाक्टर से बात चल रही है,’’ सुशांत ने कहा.
‘‘वह तो ठीक है बेटा पर…’’
‘‘मौसी आप बिलकुल चिंता न करें. स्वाति मेरी बहन है. मैं इस का रिश्ता गलत घर या गलत लड़के से कराऊंगा क्या? मेरी नाक नहीं कट जाएगी?’’ सुशांत ने अपनापन दिखाते हुए कहा, तो मां के मन में बात जमती नजर आई.
आखिर सुशांत ने अपने तर्क दे कर मां और बड़ी बहनों को स्वाति की शादी के लिए राजी कर लिया.
स्वाति ने कुछ दिन विरोध किया. लेकिन सब बहनों और मां ने अपनी गरीबी और हालात का वास्ता दे कर उसे मना लिया और फिर एक दिन स्वाति की अनंत से शादी हो गई.
स्वाति मुंबई आ गई. जैसे सुशांत ने बताया था वैसे ही सब शाही ठाटबाट थे अनंत के घर. पता नहीं कितने नौकरचाकर, गाडि़यां, बहुत बड़ा महल सा घर, सासससुर. बस, अनंत इकलौता था अपने मांबाप का. सब का दुलार और प्यार मिला स्वाति को.
अनंत का एक पैर बचपन में पोलियोग्रस्त हो गया था. वह बेसाखी के सहारे चलता. बड़ा अजीब लगता जब वह स्वाति जैसी नवयौवना के साथ चलता. स्वाति को शुरू में बड़ी शर्म महसूस होती जब लोग उन्हें देखते. किसी प्रोग्राम में जाते या मार्केट, लोग घूरने वाले अंदाज से दोनों को देखने. लेकिन स्वाति ने खुद को समझाया. अनंत का प्यार देख कर उस ने निर्णय लिया कि वह अनंत का सहारा बनेगी. उस को दुनिया दिखाएगी और सच में स्वाति ने यही किया. अनंत के कारोबार को समझा और संभाल लिया. देश भर में अनंत को ले कर घूमी स्वाति. वह मुंबई में होने वाले हर कार्यक्रम में जाती. स्वाति हाथ थाम कर चलती अनंत का. खूब ऐंजौय करती.