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‘‘हां...हम... बेशर्म इनसान...’’ अनंत के पापा ने गौरव को अंदर धकेलते हुए कहा. स्वाति बैड पर लेटी हुई थी. उस के वस्त्र अस्तव्यस्त हो रहे थे. रूम के अंदर का दृश्य सारी प्रेमलीला को बयान कर रहा था. स्वाति अपने गुस्से से भरे सासससुर को यों अचानक सामने देख बैड से उठी.

‘‘स्वाति, क्या है यह सब..?’’ सास ने चीखते हुए पूछा.

नजरें गड़ाए खड़ी रही स्वाति.

‘‘हमारी छूट और लाड़प्यार का यह सिला दिया तुम ने?’’ ससुर भी चीख पड़े.

‘‘हां, यही सच है... आप क्या समझते हैं सारी उम्र मैं यों ही गुजार दूं? एक अपाहिज के साथ? मेरे भी अरमान हैं. आखिर कब तक...’’ स्वाति अचानक घायल शेरनी की तरह चीख पड़ी.

‘‘तो रहो इस के साथ ही. हमारे घर के रास्ते अब बंद हैं तुम्हारे लिए,’’ सास ने स्वाति की बात का जवाब देते हुए कहा.

ज्यादा बहस करने का मतलब था गौरव और स्वाति से झगड़ा करना. ज्यादा उचित यही था. दोनों को वहीं छोड़ सासससुर गुस्से में भरे होटल से चले आए.

उस दिन शाम को स्वाति घर आई... वह चुपचाप अपने रूम में चली गई. अनंत को मम्मीपापा से होटल में जो कुछ हुआ उस की जानकारी मिल चुकी थी. रात को दोनों का झगड़ा भी हुआ.

‘‘अब मेरी लाइफ में तुम्हारा कोई काम नहीं स्वाति,’’ अनंत ने दोटूक बात कही.

और एक दिन गौरव के मोहपाश में बंधी स्वाति चुपचाप घर से चली गई. बस एक खत लिखा अनंत के नाम.

‘गौरव के साथ जा रही हूं. आप ने मुझे बहुत अपनापन दिया. आप की आभारी हूं. मुझे खोजने की कोशिश मत करना.’

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