सासससुर की यह मनोदशा देख ग्रीष्मा का मन जारजार रोने को हो चला. वह सोचने लगी कि यह क्या तूफान ला दिया सर ने उस की जिंदगी में. सासससुर शायद अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो उठे थे. सच भी है वृद्धावस्था में असुरक्षा की भावना के कारण इंसान अपनी वास्तविक उम्र से अधिक का दिखने लगता है. वहीं बेटेबहू और नातीपोतों के भरेपूरे परिवार में रहने वाला इंसान अपनी उम्र से कम का ही लगता है.
किसी तरह रात काट कर वह स्कूल पहुंची. बिना कुछ सोचे सीधी सर के कैबिन
में पहुंची और बोली, ‘‘कभीकभी इंसान अच्छा करने चलता है और कर उस का बुरा देता है. वही आप ने मेरे साथ किया है.’’
‘‘क्या हुआ?’’ सर ने उत्सुकतावश पूछा.
‘‘सब गड़गड़ हो गया है. शाम को आप कौफी हाउस में मिलिए. वहां बताती हूं.’’
स्कूल की छुट्टी के बाद कौफी हाउस में उस ने सारी बात सर को बता दी.
सर कुछ देर गंभीरतापूर्वक सोचते रहे फिर बोले, ‘‘मैं शाम को घर आता हूं.’’
‘‘आप आएंगे तो वे और अधिक क्रोधित हो जाएंगे...उन्हें आप की जाति से भी तो समस्या है...’’
‘‘अरे कुछ नहीं होगा, मुझ पर भरोसा रखो, अभी तुम जाओ.’’
लगभग 7 बजे विनय सर घर आए तो हमेशा हंस कर उन का स्वागतसत्कार करने वाले सासससुर आज उन के साथ अजनबियों सा व्यवहार कर रहे थे जैसे वे कोई बहुत बड़े अपराधी हों. पर विनय सर ने सदा की भांति उन के पांव छुए और कुछ औपचारिक बातचीत के बाद बाबूजी का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘बाबूजी, क्या मैं आप का बेटा नहीं बन सकता? यदि आप अपनी बहू को बेटी बना कर इतना प्यार दे सकते हो कि वह अपने से पहले आप के बारे में सोचे, तो क्या मैं जिंदगी भर के लिए आप की बेटी का सहयोगी नहीं बन सकता? मैं मानता हूं कि मेरी जाति आप की जाति से भिन्न है, परंतु क्या जाति ही सब कुछ है बाबूजी? मैं और आप की बहू मिल कर इस घर की सारी जिम्मेदारियां उठाएंगे.’’