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कुछ देर तक विचार करने के बाद ग्रीष्मा बोली, ‘‘सर, बुरा न मानें तो एक बात पूंछू? आप ने अभी तक विवाह क्यों नहीं किया?’’

‘‘आप का प्रश्न एकदम सही है. मैडम ऐसा नहीं है कि मैं विवाह करना नहीं चाहता था, परंतु पहले तो मैं अपने कैरियर को बनाने में लगा रहा और फिर कोई लड़की अपने अनुकूल नहीं मिली. दरअसल, हमारे समाज में लड़कियों को उच्चशिक्षित नहीं किया जाता. अल्पायु में ही उन की शादी कर दी जाती है. मुझे शिक्षित लड़की ही चाहिए थी. बस इसी जद्दोजहद में मैं आज तक अविवाहित ही हूं. बस यही है मेरी कहानी.’’

सर की बातें सुन कर ग्रीष्मा सोचने लगी कि सर की जाति के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं. मांबाबूजी तो बड़े ही रूढि़वादी हैं. पर किया भी क्या जा सकता है...प्यार कोई जाति देख कर तो किया नहीं जा सकता. वह तो बस हो जाता है, क्योंकि प्यार में दिमाग नहीं दिल काम करता है.

ग्रीष्मा अपने विचारों में डूबी हुई थी कि अचानक विनय सर बोले, ‘‘अरे मैडम कहां खो गईं?’’

‘‘सर मैं आप की बात को समझ रही हूं और मानती भी हूं कि आप ने मेरे अंदर जीने की इच्छा जाग्रत कर दी है. आप ने मेरे खोए आत्मविश्वास को लौटाया है. जब आप के साथ होती हूं तो मुझे भी यह दुनिया बड़ी हसीन लगती है...मुझे आप का साथ भी पसंद है... पर मेरे साथ बहुत सारी मजबूरियां हैं... मैं अकेली नहीं हूं मेरा बेटा और सासससुर भी हैं, जिन का इस संसार में मेरे सिवा कोई नहीं है... उन का एकमात्र सहारा मैं ही हूं.’’

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