‘‘हां बेटा सच में तू आज अच्छी लग रही है,’’ सासूमां ने भी कहा तो उसे सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ और फिर सोचने लगी कि क्या सारे जमाने को विनय सर की हवा लग गई है जो सब को वह सुंदर लग रही है.
सासूमां की बात सुन कर वह दूसरी बार चौंकी और अंदर जा कर एक बार फिर आईने में खुद को देखा कि कहीं चेहरे पर तो ऐसा कुछ नहीं है जिस से सब को वह सुंदर नजर आ रही है पर अब न जाने क्यों सुबह स्कूल जाते समय अच्छे से तैयार होने का उस का मन करता. विनय सर और उन की बातों से उस के सुसुप्त मन में प्रेमरस की लहरें हिलोरे लेने लगी थीं.
विवाह के बाद सजनेसंवरने और प्रेमरस में डूबे रहने की जो भावनाएं रवींद्र के शुष्क व्यवहार के कारण कभी जन्म ही नहीं ले पाई उन के अंकुर अब फूटने लगे थे. इधर वह नोटिस कर रही थी कि विनय सर भी किसी न किसी बहाने से उसे लगभग रोज अपने कैबिन में बुला ही लेते.
एक दिन जब ग्रीष्मा एक छात्र के सिलसिले में विनय सर से मिलने गई तो बोली, ‘‘सर, यह बच्चा पिछले माह से स्कूल नहीं आ रहा है?
क्या करूं?’’
की समस्या मैं हल कर दूंगा. उस के घर का फोन नंबर दीजिए पर यह बताइए आप हमेशा इतनी गुमसुम सी क्यों रहती हैं… जिंदगी एक बार मिलती है उसे खुश हो कर जीएं. जो हो गया है उसे भूल जाइए और आगे बढि़ए. चलिए आज शाम को मेरे साथ कौफी पीजिए.
‘‘मैं… नहींनहीं सर, ये सब ठीक नहीं है… मैं कैसे जा पाऊंगी? आप ही चले जाइएगा.’’
ग्रीष्मा को तो कुछ जवाब ही नहीं सूझ रहा था… जो मन में आया कह कर बाहर जाने के लिए कैबिन का दरवाजा खोला ही था कि विनय सर की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘मैं बगल वाले इंडियन कौफी हाउस में शाम 7 बजे आप का इंतजार करूंगा. आना न आना आप की मरजी?’’
इस अनापेक्षित प्रस्ताव से उस की सांसें तेजतेज चलने लगीं. वह तो अच्छा था कि
गेम्स का पीरियड होने के कारण बच्चे खेलने गए थे वरना उस की हालत देख कर बच्चे क्या सोचते? बारबार विनय सर के शब्द उस के कानों में गूंज रहे थे. दूसरी ओर मन में अंतर्द्वंद भी था कि यह उसे क्या हो रहा है. जो भावना कभी रवींद्र के लिए भी नहीं जागी वह विनय सर के लिए… विनय सर शाम को इंतजार करेंगे. जाऊं या न जाऊं… वह इसी ऊहापोह में थी कि छुट्टी की घंटी बज गई.
घर आ कर सब को चाय बना कर पिलाई. घड़ी देखी तो 6 बज रहे थे. फिर वह सोचने लगी कि कैसे जाऊं…,मांबाबूजी से क्या कहूं…पर सर…ग्रीष्मा को सोच में बैठा देख कर ससुर बोले, ‘‘क्या बात है बहू क्या सोच रही है?’’
वह हड़बड़ा गई जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. फिर कुछ संयत हो कर बोली. ‘‘कुछ नहीं पिताजी एक सहेली के बेटे का जन्मदिन है. वहां जाना था सो सोच रही थी कि जाऊं या नहीं, क्योंकि लौटतेलौटते देर हो जाएगी.’’
‘‘जा बेटा तेरा भी थोड़ा मन बहलेगा…बस, जल्दी आने की कोशिश करना.’’
‘‘ठीक है, मैं जल्दी आ जाऊंगी,’’ कह कर उस ने अपना पर्स उठाया और फिर स्कूटी स्टार्ट कर चल दी. स्कूटी चलातेचलाते उसे खुद पर हंसी आने लगी कि कैसे कुंआरी लड़कियों की तरह वह भाग ली. विनय सर का जनून उस पर इस कदर हावी था कि आज पहली बार उस ने कितनी सफाई से ससुर से झूठ बोल दिया.
जैसे ही ग्रीष्मा ने कौफी हाउस में प्रवेश किया विनय सर सामने एक टेबल पर बैठे इंतजार करते मिले. उसे देखते ही बोले, ‘‘मुझे पता था कि आप जरूर आएंगी.’’
‘‘कैसे?’’
‘‘बस पता था,’’ कुछ रोमांटिक अंदाज में विनय सर बोले, ‘‘बताइए क्या लेंगी कोल्ड या हौट.’’
‘‘हौट ही ठीक रहेगा,’’ उस ने सकुचाते हुए कहा.
‘‘आप बिलकुल आराम से बैठिए यहां. भूल जाइए कि मैं आप का बौस हूं. यहां हम सिर्फ 2 इंसान हैं. वैसे आप आज भी बहुत सुंदर लग रही. आप इतनी खूबसूरत हैं, योग्य हैं और सब से बड़ी बात आप अपने पति के मातापिता को अपने मातापिता सा मान देती हैं. जो हो गया उसे भूल जाइए और खुल कर बिंदास हो कर जीना सीखिए.’’
‘‘सर आप को पता नहीं है मेरे पति… और मेरा अतीत…’’ उस ने अपनी ओर से सफाई देनी चाही.
‘‘ग्रीष्मा प्रथम तो तुम्हारा अतीत मुझे पता है. स्टाफ ने मुझे सब बताया है. दूसरे मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता… कब तक आप अतीत को अपने से चिपका कर बैठी रहेंगी. अतीत की कड़वी यादों के साए से अपने वर्तमान को क्यों बिगाड़ रही हैं? जब वर्तमान में प्रसन्न रहेंगी तभी तो आप अपने भविष्य को भी बेहतर बना पाएंगी… मेरी बातों पर विचार करिए और अपने जीने के अंदाज को थोड़ा बदलने की कोशिश करिए.’’
विनय सर ने पहली बार उसे उस के नाम से पुकारा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि सर उसे क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं.
अचानक ग्रीष्मा ने घड़ी पर नजर डाली.
8 बज रहे थे. वह एकदम उठ गई और बोली, ‘‘सर, अब मुझे चलना होगा. मांबाबूजी इंतजार कर रहे होंगे,’’ कह कर वह कौफी हाउस से बाहर आ स्कूटी स्टार्ट कर घर चल दी.
घर आ कर ग्रीष्मा सीधे अपने कमरे में गई और खुद को फिर आईने में देख सोचने लगी कि क्या हो रहा है उसे? कहीं उसे प्यार तो नहीं हो गया… पर नहीं वह एक विधवा है… मांबाबूजी और कुणाल की जिम्मेदारी है उस पर…वह ये सब क्यों भूल गई…सोचतेसोचते उस का सिर दर्द करने लगा तो कपड़े बदल कर सो गई.
अगले दिन जैसे ही स्कूल पहुंची तो विनय सर सामने ही मिल गए. उसे देखते ही बोले, ‘‘मैम, फ्री हो कर मेरे कैबिन में आइएगा, आप से कुछ काम है.’’
‘‘जी सर,’’ कह कर वह तेज कदमों से स्टाफरूम की ओर बढ़ गई.
जब वह सर के कैबिन में पहुंची तो विनय सर बोले, ‘‘मैडम कल शिक्षा विभाग की एक मीटिंग है, जिस में आप को मेरे साथ चलना होगा.’’
‘‘सर मैं… मैं तो बहुत जूनियर हूं… और टीचर्स…’’ न जाने क्यों वह सर के साथ जाने से बचना चाहती थी.
‘‘यह तो मेरी इच्छा है कि मैं किसे ले जाऊं, आप को बस मेरे साथ चलना है.’’
‘‘जी, सर,’’ कह कर वह स्टाफरूम में आ गई और सोचने लगी कि यह सब क्या हो रहा है… कहीं विनय सर को मुझ से… मुझे विनय सर से… तभी फ्री टाइम समाप्त होने की घंटी बजी और वह अपनी कक्षा में आ गई. आज उस का मन बच्चों को पढ़ाने में भी नहीं लगा. दिलदिमाग पर सर का जादू जो छाया था.
अगले दिन मीटिंग से वापस आते समय विनय सर ने गाड़ी फिर कौफी हाउस के बाहर रोक दी. बोले, ‘‘चलिए कौफी पी कर चलते हैं.’’
उन का ऐसा जादू था कि ग्रीष्मा चाह कर भी मना न कर सकी.
कौफी पीतपीते विनय सर उस की आंखों में आंखें डाल कर बोले, ‘‘ग्रीष्मा, आप ने अपने भविष्य के बारे में कुछ सोचा है?’’
‘‘क्या मतलब सर… मैं कुछ समझी नहीं…’’ अचकचाते स्वर में समझ कर भी नासमझ बनते हुए उस ने कहा.
‘‘जो हो गया है उसे भूल कर नए सिरे से जिंदगी शुरू करने के बारे में सोचिए…मैं आप का हर कदम पर साथ देने को तैयार हूं. यदि आप को मेरा साथ पसंद हो तो…’’ सपाट स्वर में विनय सर ने अपनी बात ग्रीष्मा के सामने रख दी.