रीना के साथ उस का संबंध नैतिकता की हर सीमा पार कर चुका है, यह मुझे उस दिन पता चला, जब रीना 2 दिन बैंक नहीं आई. उस ने गर्भपात कराया है, यह जान कर करंट सा लगा मुझे.
‘‘अरे, यह पहली बार तो हुआ नहीं, रीना के साथ. वह भी कहां की शरीफ है, जो हम सारा दोष केशव पर डाल दें,’’ खाना खातेखाते मेरे सहयोगी ने रहस्योद्घाटन किया.‘‘जब उसे पता है, केशव उस से शादी नहीं करने वाला तो क्यों जाती है उस के साथ?’’ कहते हुए मैं ने हैरानी से देखा, तब गरदन हिला दी थी मेरे सहयोगी ने.
‘‘यह तो रीना ही बता सकती है, हम क्यों जानें. हम तो बस इतना ही जानते हैं कि रीना के साथ यह पहली बार नहीं हुआ,’’ दूसरे ने उत्तर दिया.एक नया अनुभव था यह मेरे लिए एक स्त्री का ऐसा चालचलन मेरे गले में फांस जैसा अटक गया था.
तीसरेचौथे दिन रीना पहले की तरह ही केशव के साथ घुलमिल कर बातें कर रही थी, जिसे देख कर मुझे स्वयं पर ही घिन आने लगी कि कैसे गंदे लोगों के साथ काम करता हूं.एक सुबह केशव आया नहीं, पता चला बिहार गया है अपने गांव.15-16 दिन बाद लौटा, तब अपनी मां को भी साथ लेता आया. सामने घर में एक औरत को देख घर जैसी अनुभूति हुई. मुझे लगा जैसे मेरे घर में मेरी मां हो.
केशव की मां है, यह सोच कर तनिक झिझका था मैं, लेकिन जब केशव ने मुसकरा कर पुकार लिया, तो अनायास ही मैं ने जा कर उन के चरण छू लिए.‘‘जीते रहो, बेटे. क्या नाम है तुम्हारा. कहां से हो तुम…’’कई प्रश्न पूछ डाले केशव की मां ने. उत्तर दिया मैं ने और उस के बाद उन से मेरी जरा सी दोस्ती हो गई.
केशव बैंक में देर तक रहता था, इसलिए जैसे ही हम तीनों आते केशव की मां हमारे पास आ जातीं. हमारा हालचाल पूछतीं. कभीकभी वह हमारे लिए गुझिया, मठरी और कभी पकौड़े भी ले आतीं.‘‘बहुत काम रहता है क्या केशव को बैंक में, जो सुबह का गया देर रात आता है? कहां रहता है यह?’’सुन कर चकित था मैं, क्योंकि मेरे सामने ही तो वह रीना के साथ निकला था हर रोज की तरह. क्या उत्तर देता मैं उन्हें, मैं ने गरदन हिला कर कंधे उचका दिए.
‘‘किसी जरूरी काम से गया होगा, इतना मैं जानती हूं, लेकिन वह जरूरी काम क्या है, मेरी समझ में नहीं आता,’’ स्वयं ही उत्तर भी दिया अम्मां ने, ‘‘वहां से तो लाया था यह कह कर कि अम्मां को जालंधर में किसी अच्छे डाक्टर को दिखाऊंगा और यहां आए 15 दिन हो गए मुझे, उसे तो इतना भी खयाल नहीं कि सुबह की छोड़ी मां वापस लौटने तक भूखी तो नहीं बैठी रह गई. वैसे तो खाना बनाने वाली दोपहर को भी आती है मुझे खाना खिलाने, लेकिन बिहार से यहां मैं बाई के हाथ की रोटी तो खाने नहीं आई थी.’’
‘‘आप केशवजी की शादी क्यों नहीं कर देतीं? शादी की उम्र तो हो चुकी है न उन की. पत्नी होगी घर में तो समय पर चले ही आएंगे,’’ मैं ने कहा.‘‘बाहर क्या पत्नी के साथ घूमता रहता है जो,’’ सहसा पूछा अम्मां ने, जिस पर मैं बगलें झांकने लगा. क्या उत्तर देता मैं.‘‘कोई है क्या, जिस के पास रहता है इतनी देर? सचसच बताना बेटा, मैं भी तुम्हारी मां जैसी हूं न.’’
‘‘पता नहीं, अम्मांजी. सच, मुझे पता नहीं,’’ मैं सफेद झूठ बोल गया. ऐसा झूठ, जिस से अम्मां का विश्वास बना रहे.‘‘पहले कब, अम्मांजी?’’ जिज्ञासावश पूछा मैं ने.