बालकनी में अकेली बैठी अंकिता की टेबल पर रखी काफी ठंडी हो रही थी. हलकी बूंदाबांदी अब मूसलाधार बारिश में बदल गई थी. वह पानी की मोटीमोटी धारों को एकटक निहार रही थी लेकिन उस का दिमाग कहीं और था. मम्मीपापा वकील से बात करने गए थे, घर में वह अकेली थी. उस की नजरों के सामने बारबार श्वेता दी का चेहरा आ रहा था.
श्वेता दी... उस की जेठानी. कहने को उन दोनों का रिश्ता देवरानीजेठानी का था लेकिन श्वेता ही सही माने में उस की बड़ी बहन साबित हुई. अगर वह न होती तो न जाने क्या होता उस के साथ. उन्होंने उसे उस नर्क से निकाला जहां वह स्वर्ग की तलाश में गई थी.
हां, स्वर्ग से भी सुंदर अपना घर बसाने की चाहत में उस ने दीपेन का साथ चुना था. दोनों एक ही औफिस में काम करते थे. दोनों में दोस्ती हुई जो धीरेधीरे प्यार में बदल गई. यह कब, कैसे हुआ, अंकिता को पता ही न चला. हर प्रेमी जोड़े की तरह वे साथ जीनेमरने की कसमें खाते, हाथों में हाथ डाले मौल में घूमते, लंचडिनर साथ में करते. दीपेन उस के आगेपीछे डोलता रहता. उस की खूब केयर करता. अंकिता उस के इसी केयरिंग नेचर पर फिदा थी.
उसे याद है, औफिस का वाटर प्यूरीफायर खराब हो गया था. गरमी इतनी थी कि एयरकंडीशन औफिस में भी गला सूख रहा था. उस ने कहा, ‘दीपेन, मैं प्यास से मर जाऊंगी. मुझे प्यास कुछ ज्यादा ही लगती है और नौर्मल पानी सूट नहीं करता.’
‘यह बंदा किस दिन काम आएगा, अभी पानी की बोतल ले कर आता हूं, यार.’
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