‘अब तक तुम्हें समझ में आ गया होगा कि हमारे ऊपर पहरा है. इसलिए सब से छिपा कर किसी तरह लिख रही हूं. जितना लिखूं, उस से ज्यादा समझना. तुम ने गलत लडक़े से शादी कर ली. यहां हर आदमी दो चेहरे रखता है जो बहुत बाद में समझ में आता है. मेरी शादी धोखे से हुई. इन लोगों का सारा खर्च और ठाटबाट मेरे पापा के पैसों से चलता है. ये लोग हमेशा मारपीट कर के मुझ से पैसे मंगवाते हैं. मैं कब तक पापा से पैसे मांगूंगी और वे कब तक दे पाएंगे. तुम्हें फंसाने के लिए दीपेन ने शराफत का ढोंग रचा. अब धीरेधीरे उस का रंगरूप देखना. तुम्हारे साथ भी यही सब होगा. जल्दी ही वह यहां आ जाएगा. यह घर भी इन लोगों का अपना नहीं है, किराए का है. मैं इस नर्क में फंस गई हूं लेकिन अभी तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा है, तुम यहां से निकल जाओ. अपने हिस्से का नर्क मुझे भोगना ही है, तुम अपने हिस्से का स्वर्ग बचा लो.
‘-श्वेता दी.’
अंकिता के पांवतले की जमीन खिसकने लगी. दीपेन अपनी शराफत का नकाब धीरेधीरे उतार रहा था, इस का एहसास उसे होने लगा था’ प्यार का भूत उस के सिर से जाने कब उतर गया था. पता नहीं कब उस का बचपन चला गया और वह मैच्योर हो गई. अब उसे एहसास होने लगा, क्यों श्वेता दी से बात करने से उसे हमेशा रोका जाता, क्यों उस पर साए की तरह नजर रखी जाती? जितना सोचती उतना दर्द होता. पापा, भैया सब ने कितना समझाया था उसे लेकिन...
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