अपने देश में पुण्यात्माओं का टोटा नहीं, खूब भरमार है. थोक के भाव पुण्यात्मा मिल जाएंगे. आप जिधर भी देखें, अपनी नजर जिस दिशा में फेंकें, उधर पुण्यात्मा ही पुण्यात्मा दिखाई देंगे. चोर, उचक्के, नेता, अभिनेता, राजनेता, विद्वान, मूर्ख तथा आम और खास सभी पुण्य कमाने, पुण्य करने पर उतारू दिखाई देते हैं. जब भी जहां भी मौका लगता है, लगेहाथ पुण्य कमा लेते हैं. ऐसा लगता है कि भारतीयजन पुण्य की गठरियां लादे फिर रहे हैं. लोगों ने पुण्य कमाने के इतने आयाम और तरीके खोज लिए हैं कि पुण्य बिखरा पड़ रहा है तथा जबरदस्ती पुण्यात्माओं की पैदावार बढ़ा रहा है.

अभी हाल ही में गाय की पूंछ पकड़ कर राजनीतिक दल अपनेअपने राजनीतिक पुण्य कमाने में जुटे हैं. ऐसा लगता है कि गायों पर आफत न आ जाए. अभी तक तो मरते समय गाय का दान दिया जाता था ताकि गाय की पूंछ पकड़ कर मनुष्य की आत्मा भवसागर पार कर सके, लेकिन अब तो राजनीतिक दल जीतेजी चुनाव की वैतरणी पार करने के लिए गाय की पूंछ पकड़ने पर उतारू हो गए हैं.

भाजपा की देखादेखी कांगे्रस और अन्य दल भी गाय की पूंछ से पुण्य कमाने के लिए तैयार हैं. पुण्य कमाने के सब से अधिक साधन और संसाधन तो अपने देश में ही हैं. व्रत रख कर के, पूजाअर्चना कर के, त्योहार और पर्वों पर मंदिरों, मसजिदों, गुरुद्वारों, गिरिजाघरों में दर्शन और प्रार्थना कर के, नदी व तालाबों में स्नान कर के और दान दे कर पुण्य कमाए जा रहे हैं. पुण्यों की गठरियां बांधी जा रही हैं, ताकि मरने पर स्वर्ग या जन्नत मिल सके तथा पीने को सोमरस व आबेहयात और भोगने के लिए अप्सराएं व हूरें मिल सकें.

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