एक दिन पार्थ और पंखुड़ी का कहीं घूमने का प्रोग्राम बना. माधुरी सोच रही थी कि वह और बच्चे भी जाएंगे. लेकिन पार्थ और पंखुड़ी ने सारी तैयारी कर ली और बोले, ‘मम्मी, आप कहां परेशान होंगी? दोनों बच्चों को हम आप के भरोसे ही छोड़े जा रहे हैं. कहने को हर काम के लिए मेड हैं पर उन पर निगरानी रखना, बच्चों का खानापीना देखना आदि सबकुछ माधुरी की ही ज़िम्मेदारी थी. 3 माह बाद ही माधुरी को लगने लगा था कि बेटे के पास रहने का फ़ैसला ले कर माधुरी ने बहुत बड़ी गलती कर ली है. फिर सोचसमझ कर माधुरी ने रैसिडेंशियल स्कूल में नौकरी करने का फैसला ले लिया था. तब से आज तक माधुरी एक बार ही छुट्टियों में बेटे के घर में गई थी और एक फालतू समान की तरह पड़ी रही थी. तब से ले कर आज तक वह कभी गई नहीं और न ही कभी फ़ोन आया.
कुमुद एक बार प्रेम में असफल हुई और फिर उस ने कभी विवाह न करने का फैसला कर लिया था. जब तक कुमुद अपने घर पर रह कर स्थानीय स्कूल में नौकरी करती रही तब तक भाईभाभी उसे पान के पत्ते की तरह फेंटते रहे. कुमुद के बालबच्चे नहीं हैं. यह ही सोच कर वह 20 वर्षों की नौकरी में भी एक पैसा भी नहीं जोड़ पाई थी. कभी भतीजे की एडमिशन फीस तो कभी भांजी की शादी में ख़र्च करना उस की जिम्मेदारी बन जाती थी. कुमुद को होश तब आया जब पिता की मृत्यु के बाद पूरा घर भाइयों के नाम कर दिया गया था. जब कुमुद ने आवाज़ उठानी चाही तो वह भाइयों के साथसाथ मां और बहनों की भी दुश्मन बन गई थी. वह पिछले 7 वर्षों से इस स्कूल में संस्कृत पढा रही हैं.