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उधर, माधुरी के बेटेबहू को बेहद आश्चर्य हुआ जब न तो माधुरी का फ़ोन आया और न ही वह आई. वहीं, कुमुद के भतीजे भी बूआ को याद कर रहे थे. बूआ हर छुट्टी में उन का घूमने का ट्रिप तो कम से कम स्पौंसर करा देती थीं. इंद्रवेश और जयति के घरवाले भी समझ नहीं पा रहे थे कि वे आए क्यों नहीं हैं?

बहुत ही सोचविचार के साथ धनौल्टी में एक मकान फाइनल कर दिया गया था. पेशगी के तौर पर विजय ने 2 लाख रुपए दे दिए थे. मकान की सब से खास बात यह थी कि उस में कुल मिला कर 6 कमरे थे और अगर चाहें तो हर कमरे में छोटी सा किचन और बाथरूम बना सकते हैं. कुल मिला कर हर सदस्य को 11 लाख रुपए का इंतज़ाम करना था. विजय और विनोद के लिए यह मुश्किल न था पर बाकी सदस्यों के लिए यह थोड़ा मुश्किल था. इंद्रवेश और जयति की समस्या होम लोन के कारण हल हो गई थी. जयति बेहद खुश थी क्योंकि अब वह फ़ालतू में पैसे नहीं उड़ाएगी. इंद्रवेश को भी लगा कि शायद अब उसे भी निक्कमे, नकारापन से मुक्ति मिल जाए.

मगर माधुरी और कुमुद की समस्या का कोई हल नहीं दिख रहा था. एक तो उन की उम्र के कारण लोन नहीं मिल पा रहा था और दूसरा, उन के पास कोई ऐसी मोटी बचत भी न थी. कुमुद और माधुरी की समस्या प्रौविडैंट फंड ने सुलझा दी थी. दोनों ने ही प्रौविडैंट फंड से एडवांस ले लिया था. एक बार विनोद ने कहा भी कि प्रौविडैंट फंड का पैसा हमारे बुढापे की लाठी होता है. कुमुद ने कहा, “विनोद सर, तभी तो अपने लिए इस लाठी से एक छोटे से घर का इंतज़ाम कर रही हूं.” माधुरी के कहा, “पहली बार अपनी मुक्ति के लिए कुछ कर रही हूं, थोड़ा रिस्क तो लेना ही पड़ेगा.”

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