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सुभद्रा उदास हो कर बड़बड़ाई, ‘अच्छा सोचूंगी, तो अच्छा ही होगा. लीला की भी चिंता खाए जा रही है, हर बार यही कहती है कि आऊंगी लेकिन अब तक आई नहीं. उस की जरूर कोई मजबूरी होगी.’

सुभद्रा की तबीयत खराब होने लगी थी. छाती में बलगल जमा हो गया था. खांसी और दर्द भी बढ़ रहा था. ठंड से जांघों में ऐंठन और दर्द इतना हो गया कि वह गुसलखाने तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी.

चंपा मैडिकल की दुकान से टौयलेटपौट ले आई.

सुभद्रा को जब जरूरत होती, वह सामने खड़ी हो जाती. साफसफाई का ध्यान देती, स्पंज करती और जरूरत पड़ने पर डाक्टर को घर पर बुला देती.

सुभद्रा ने अनीता को फोन किया और अपनी बीमारी के विषय में बताया इस आशा से कि शायद इन दुर्दिनों में मदद ही कर दे.

अनीता ने स्वास्थ लाभ हेतु कई नुस्खे बता डाले.

“भाभी, सोते समय हल्दी वाला दूध पीना शुरू कर दो. ज्यादा ऐलोपैथिक दवाएं मत खाना, छाती में जकड़न होगी. ठंडी चीजें लेना भी बंद कर दो.”

सुभद्रा सुनती रही. फिर खांसते हुए धीमी आवाज में बोली, “कुछ दिनों के लिए आ जातीं तो...”

“कैसे आऊं, भाभी, घर में पेंटिंग का काम लगा हुआ है. ठीक हो जाओगी. शहद और सीतोपलादी चूर्ण लेती रहो और हां, पानी गरम ही पीना.”

“अच्छा, निर्मल को ही भेज दे कुछ दिनों के लिए.”

“ओहो भाभी, तुम हमारी परेशानी नहीं समझ पाओगी. ये तो मुंबई गए हैं काम से. पूरे महीने भर का टूर है.”

उस ने उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा था. अनीता के बच्चे अब छोटे नहीं रह गए हैं, उस ने यह सोचा और खांसते हुए रुकरुक कर बोली, “बेटाबेटी घर संभाल लेंगे कुछ दिन, फिर चली जाना.”

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