उस ने उम्मीद से ही मेरे पास भेजा है. न दूं तो अपनी ही नजर में गिर जाऊंगी. सुभद्रा थोड़ी पढ़ीलिखी थी. उस ने 2 लाख रुपए के चेक पर हस्ताक्षर कर के निर्मल को पकड़ा दिया. शाम तक वह खुशीखुशी लौट गया.
सबकुछ ठीक चल ही रहा था कि एक वह दिन गुसलखाने से बाहर निकलते समय फिसल गई. जांघ की हड्डी फ्रैक्चर हो गई. गनीमत थी कि गिरने की आवाज निचली मंजिल में किराएदार को सुनाई दे गई. इतवार था, किराएदार की छुट्टी थी. वह तेजी से ऊपरी मंज़िल में गया. दरवाजे खुले थे. उस ने आसपास के लोगों की मदद से सुभद्रा को अस्पताल पहुंचाया. कई दिन अस्पताल में गुजारने के बाद वह लौटी. घर में कैद हो गई थी वह. दर्द इस कदर कि उस का बाहर निकलना तो दूर, वौकर के सहारे घर के भीतर ही चल पाना कठिन होता. अनीता को भी अपना हाल बताया लेकिन कोई नहीं आया. एकदो दिन फोन पर हालचाल पूछे थे, बस.
एक दिन लीला आई दोपहर का खाना लिए. सुभद्रा बिस्तर से उठना चाहती थी लेकिन उस से उठा नहीं गया.
“लेटी रहो, ज्यादा हिलोडुलो मत. खाना ले कर आई हूं” लीला बोली.
“क्यों कष्ट किया. पड़ोसी दे जाते हैं, बहुत ध्यान रखते हैं मेरा.”
“याद है, आज तेरा जन्मदिन है. मीठा भी है, तुझे गुलाबजामुन पसंद हैं न?”
“तुझे कैसे पता?” वह आश्चर्यचकित हो कर बोली.
“तूने ही तो बताया था कि मैं वसंतपंचमी के दिन हुई थी.”
सुभद्रा हंसने लगी, “जन्मदिन किसे याद है और क्या करना है याद कर के.”
“क्यों? अपने लिए कुछ नहीं? लेकिन उस दिन मांबाप के लिए कितना बड़ा दिन रहा होगा!”
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