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कायरा लखनऊ के हजरतगंज में अपने पुश्तैनी मकान में रहती थी. संयुक्त परिवार था उस का. दादादादी, चाचाचाची, चचेरे भाईबहन सभी साथ में रहते थे. भीड़भाड़ वाले इलाके में था उस का घर.

ठंड का मौसम था, इसलिए छत पर सुबह से ही धूप में बैठी थी कायरा, लेकिन उस की निगाहें अखबार की दुकान पर जमी हुई थीं, क्योंकि आज एक सरकारी बैंक में परिवीक्षाधीन अधिकारी पद के लिए दिए गए साक्षात्कार का परिणाम आने वाला था. अखबार बेचने वाले की दुकान घर के ठीक सामने थी. रोजगार समाचार अमूमन दोपहर में आता था, लेकिन वह सुबह से ही बेचैन थी. उसे लग रहा था कि आज जल्दी रोजगार समाचार आ जाएगा. बैंक के मानव संसाधन विभाग (एचआर) वालों ने कहा था कि आज के रोजगार समाचार में रिजल्ट जरूर आ जाएगा.

तकरीबन एक बजे अखबार वाले भैया को रोजगार समाचार ले कर आते हुए देख कर वह भागते हुए नीचे पहुंची और बिना पैसे दिए ही रोजगार समाचार के पन्ने पलटने लगी. उस के चेहरे पर तनाव साफतौर पर दृष्टिगोचर हो रहा था. पहली बार में उसे अपना रोल नंबर नहीं दिखा तो वह घबरा गई, लेकिन दोबारा हिम्मत कर के उस ने रोल नंबर देखना शुरू किया. इस बार उसे अपना रोल नंबर दिख गया. उस ने दसियों बार रोल नंबर मिलाया, तब उसे तसल्ली हुई. वह खुशी से पागल हो गई. खुश होना स्वाभाविक भी था, क्योंकि विगत 2 सालों में कई परीक्षाओं के साक्षात्कारों में वह असफल हो चुकी थी.

कायरा पूरे महल्ले में घूमघूम कर अपनी सफलता के बारे में बता रही थी. घर में पार्टी का माहौल बन गया था. छोटा भाई दौड़ कर चौक से मिठाई ले आया और कायरा ने खुद महल्ले में मिठाई बांटी.

चौथे दिन नियुक्तिपत्र भी आ गया. उसे भोपाल के होशंगाबाद रोड स्थित स्थानीय प्रधान कार्यालय में योगदान देना था. सही समय पर कायरा कार्यालय पहुंच गई. वहां पहले से एक और उम्मीदवार बैंक में योगदान देने के लिए बैठा था. बातचीत के क्रम में पता चला कि उस का नाम कपिल है. वह भोपाल के ईदगाह हिल्स का रहने वाला है. चूंकि, कपिल लोकल था, इसलिए कायरा कपिल से रहने व खाने की व्यवस्था के बारे में बात करने लगी.

कपिल ने कहा, “उस के चाचाजी का “हिल्सव्यू” नाम से एक होटल महाराणा प्रताप नगर, जिसे एमपी नगर के नाम से भी जाना जाता है, में है और मेरे पिताजी का “गिपीज” नाम से एक रेस्टोरेंट चाचाजी के होटल से सटे हुए हैं, तुम आज ही से वहां रह सकती हो, डिनर और ब्रेकफास्ट होटल में भी कर सकती हो या फिर मेरे पिताजी के रेस्टोरेंट में, जो भी तुम्हें सुविधाजनक लगे.”

एचआर के प्रमुख रमेश रामनानी सर थे, जो कपिल के दूर के रिश्तेदार थे. कपिल के आग्रह पर उन्होंने सामान्य बैंकिंग के प्रशिक्षण हेतु दोनों की पोस्टिंग ईदगाह हिल्स शाखा में कर दी. चूंकि, ईदगाह हिल्स छोटी शाखा थी, इसलिए वहां सीखने की ज्यादा गुंजाइश थी. पोस्टिंग 6 महीनों के लिए की गई थी. शाखा प्रबंधक जगदीश राय सर थे. उन का स्वभाव बहुत ही अच्छा था. वे कायरा और कपिल को पूरे शिद्दत से काम सिखाते थे और वे भी मनोयोग से काम सीखने की कोशिश करते थे.

कपिल ने कायरा के रहने का इंतजाम ईदगाह हिल्स में अपने घर में कर दिया. उस का घर ईदगाह हिल्स में अवस्थित गुरुद्वारा के पास था. शानदार तीनमंजिला मकान था कपिल का. घर की छत से बड़ी झील दिखाई देती थी. ऊंचाई से देखने की वजह से कायरा को झील के ऊपर कोहरा होने का भ्रम हो रहा था.

कपिल के पिता ने कायरा से कहा, “तुम रहने का किराया नहीं दोगी, तभी तुम हमारे साथ रह सकती हो.”

कायरा ने कहा, “ठीक है अंकल.”

अमूमन शाम के 7 से साढ़े 7 बजे तक कपिल और कायरा शाखा के काम से फारिग हो जाते थे. उस के बाद अकसर वे बड़ी झील चले जाते थे. कायरा को नाटक देखने का शौक था. वह हर रविवार भारत भवन नाटक देखने जाती थी और कभीकभी जिद कर के अपने साथ कपिल को भी ले जाती थी. कपिल को नाटकों में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन वह बेमन से ही सही, लेकिन कायरा के साथ चला जाता था. हर छुट्टी में वे भोपाल के आसपास के पर्यटन स्थलों में घूमने चले जाते थे. कम समय में वे भोजपुर, सांची, भीम बेटका, पंचमढ़ी, होशंगाबाद आदि घूम चुके थे. कभीकभी तो वे 40 किलोमीटर की दूरी सिर्फ भुट्टे खाने के लिए तय कर लेते थे. सीहोर का भुट्टा भोपाल में काफी फेमस था.

एक दिन कपिल ने कायरा से कहा, “अभिजीत इडली, मेंदुबड़ा, दालबड़ा, सांभर और चटनी बहुत ही स्वादिष्ठ बनाता है.“

कायरा ने पूछा, “कौन है अभिजीत?”

कपिल ने कहा, “अभिजीत शाहपुरा में हर रोज सुबह में एक ठेले पर अपनी दुकान लगाता है. वह पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर का रहने वाला है, लेकिन भोपाल में वह एक लंबे समय से रह रहा है. पहले वह भेल में नौकरी करता था, लेकिन बाद में किसी कारणवश उस की नौकरी छूट गई.”

कपिल ने पुनः कहा, “कितना भी आग्रह करो. वह अपनी रेसेपी किसी के साथ शेयर नहीं करता है.”

अभिजीत की तारीफ सुन कर कायरा से रहा नहीं गया. वह बोली,“इस रविवार को हम अभिजीत के बनाए व्यंजनों का लुत्फ उठाएंगे.”

पहली बार में ही कायरा अभिजीत के व्यंजनों की फैन बन गई. उस के बाद तो हर रविवार को वे नाश्ता करने के लिए अभिजीत के पास जाने लगे. रात में अकसर न्यू मार्केट के कौफीहाउस में वे सिर्फ कौफी पीने के लिए जाते थे. कायरा को शाहजहानाबाद स्थित करीम होटल की चिकनबिरयानी का जायका भी बहुत भाता था.

दोनों खुशगवार माहौल में जीवन व्यतीत कर रहे थे. धीरेधीरे कपिल और कायरा दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे, लेकिन जब दोनों ने अपने घर वालों को अपने प्यार के बारे में बताया और शादी करने की बात कही, तो दोनों के घर वाले इस के लिए तैयार नहीं हुए.

दोनों ने अपने घर वालों को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. अंत में दोनों ने भोपाल में कोर्ट मैरिज कर ली.

शादी के बाद दोनों नए भोपाल के शाहपुरा में शिफ्ट हो गए. छोटी झील के सामने उन्होंने एक शानदार विला किराए पर लिया. बालकनी से छोटी झील का शानदार नजारा दिखता था. कायरा रात को बालकनी में घंटों बैठ कर झील को निहारती रहती थी और अवकाश के दिन पास के  बृजवासी स्वीट से लड्डू मंगवा कर खाती थी. क्योंकि उसे लड्डू बहुत पसंद थे. लखनऊ में भी वह खूब लड्डू खाती थी, लेकिन यहां के लड्डू ज्यादा स्वादिष्ठ थे.

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