"यह कैसी बातें कर रहे हो पराग? हिम्मत हारोगे तो कैसे काम चलेगा? अभी तुम्हारा घाव ताजा है. इसलिए कंसंट्रेट नहीं कर पा रहे हो. देखना, थोड़े दिनों में तुम पहले की तरह पढ़ाई करने लग जाओगे. अगर थक गए हो तो थोड़ा लेट लो. आधा घंटे बाद मेरी मीटिंग है. तब तक मैं फ्री हूं. चलो, तब तक एक पावर नैप ले लेते हैं यार. मैं भी सुबह से बैठेबैठे थक गई हूं," कहते हुए वह उसे अपनी बांह में जकड़ उस से चिपक कर लेट गई, लेकिन रोते हुए पराग ने उस से छिटक कर दूर होते हुए कहा,"नहीं, मुझे लगता है कि मैं एक पैरासाइट की लाइफ बिता रहा हूं, हर चीज के लिए तुम पर डिपेंडेंट हो गया हूं. मुझ से यह जिंदगी नहीं जी जा रही है यार, समझा करो. कभी सोचा ना था कि मुझे यह दिन भी देखना पड़ेगा, जब मैं हर चीज के लिए तुम्हारा मोहताज हो जाऊंगा. नहीं... नहीं, बस और नहीं, मुझे जयपुर जाने दो."
"यह तुम कह रहे हो पराग? क्या हम अलगअलग हैं? तुम तो अपने प्यार की कसमें खाया करते थे, दुहाई दिया करते थे. तो अब वो वादे, वो कसमें क्या हुए? याद है, तुम हमेशा क्लास में फर्स्ट आया करते थे और मैं हमेशा टॉप टेन के आखिर में रहा करती थी. तुम को हरगिज हिम्मत नहीं हारनी है. मैं तुम्हें गाइड करूंगी. यह हो ही नहीं सकता कि तुम सीए नहीं बनो."
"नहीं तानी, अब पढ़ाई करना मेरे बस की बात नहीं है. बहुत कोशिश कर ली, नहीं हो पा रहा है मुझ से. इतनी देर से यह बैलेंसशीट टेली करने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन हो ही नहीं रही. समझो यार, मैं कोई नाटक नहीं कर रहा, फैक्ट बता रहा हूं. मुझे वापस जयपुर जाने दो."
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