“दादाजी, दादाजी, आप भी चलिए न हमारे साथ. हम दोनों के साथ डांस करिए न, प्लीज दादाजी,” नलिनजी के पोते की मंगेतर तानी ने अपनी शादी के उपलक्ष्य में आयोजित संगीत संध्या के प्रोग्राम में अपना डांस बीच में छोड़ कर स्टेज से नीचे आ कर अपने होने वाले दादा ससुर को अपने और अपने मंगेतर पराग के साथ नाचने के लिए कहा.
“अरे बेटा तुम लोग नाचो. मैं तुम लोगों को देख कर ही खुश हो रहा हूं यहां बैठेबैठे. जाओ बेटा स्टेज पर जाओ,” दादाजी ने तानी को बेहद लाड़ से पुचकारते हुए कहा.
तभी उन का पोता पराग स्टेज के नीचे दादाजी के पास आया और डांस करने के लिए उन से इसरार करने लगा, “दादाजी, आप स्टेज पर नहीं आएंगे तो मैं भी डांस नहीं करूंगा, हां… ”
“अरे बेटा, तुम दोनों को साथसाथ नाचते देख मेरी आत्मा तृप्त हो गई. अब इन बूढ़ी हड्डियों में दम नहीं रहा बेटा. तुम दोनों डांस करो. मुझे तुम दोनों को एकसाथ डांस करते देख कर बेहद खुशी मिल रही है.”
“नहीं, आज आप भी हम दोनों के साथ डांस करेंगे,” कहते हुए पराग ने दादाजी का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती उन्हें उठा दिया और उन्हें सहारा देते हुए स्टेज पर ले गया.
पराग और तानी दोनों दादाजी का एकएक हाथ पकड़ गोला बना कर एक मधुर गाने की धुन पर डांस करने लगे.
आज उन की खुशी की इंतिहा नहीं थी. आज उन के एकमात्र पोते पराग की सगाई और संगीत संध्या का प्रोग्राम था. कल उस की शादी होने वाली थी.
इतनी आपदाओंविपदाओं के बाद आज यह दिन आया था, यही सब सोचतेसोचते उन की आंखों की कोरें भीग आईं, और दस मिनट पराग और तानी के साथ उलटेसीधे हाथपैर चला कर वह स्टेज से नीचे आ गए.
आज के खुशनुमा मौके पर उन्हें पराग के मृत पिता नमन, मां संजना और बड़े भाई संकल्प की याद शिद्दत से आ रही थी. कलेजे में तीखी हूक उठी, “काश, आज वे तीनों जिंदा होते तो समां ही कुछ और होता,” यह सोचतेसोचते उन के गले में रुलाई उमड़ी और वह सुबकने से खुद को नहीं रोक पाए.
उन्हें यों आंसू बहाते देख तानी और पराग उन के पास आए और उन्हें चुप करा कर वह उन के साथ ही बैठ गए और प्रोग्राम खत्म होने तक बैठे रहे. उन दोनों ने उन के साथ ही खाना खाया.
रात के बारह बजने आए. प्रोग्राम और खानापीना खत्म होने के बाद सब लोग घर वापस आ गए. तानी और पराग उन्हें उन के पलंग पर सुलाने आए, ‘दादाजी, आप थक गए होंगे. अब आप सो जाइए, सुबह मिलते हैं,” कहते हुए उन दोनों ने उन्हें चादर ओढ़ाई और कहा, “लव यू दादाजी, गुड नाइट,” और दोनों कमरे के बाहर आ गए.
आज उन्हें पराग के पिता यानी अपने मृत बेटे नमन की याद बुरी तरह सता रही थी. न जाने कब अनायास ही उन का मन पुरानी स्मृतियों के बीहड़ में भटकने लगा, उन्हें भान न हुआ.
नमन उन का लाड़ला एकलौता बेटा था. न जाने कितने मंदिरोंमजारों की चौखट पर मनौतियों के बाद शादी के पांच वर्षों बाद उन की गोद में आया था.
उसे दिनोंदिन बढ़ता देख वे दोनों पतिपत्नी ह्रदय की भीतरी तह तक तृप्त हो जाते. वह था भी इतना अच्छा कि वे दोनों उस की बड़ाई करते नहीं थकते. कुशाग्र बुद्धि का था, तो पहली बार में सीए की सभी परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली, और सीए बन कर एक बड़ी एमएनसी में लग गया.
पतिपत्नी जबजब बेटे का मुंह देखते, उन्हें लगता कि उन के किसी जन्म के पुण्य प्रताप से उन्हें उस जैसी संतान मिली.
उस की नौकरी लगने के 2 वर्षों बाद उन्होंने बड़े ही लाड़चाव से बेटे की पसंद की शादी की. उन की बहू संजना भी सीए थी, और नमन के साथ ही नौकरी करती थी. बेटेबहू की साक्षात रामसीता की जोड़ी देख दोनों पतिपत्नी फूले न समाते.
उन की आशा के अनुरूप बहू भी बेहद संस्कारी, गुणी और समझदार निकली. घर जोड़ कर चलने वाली थी. उस के दो बेटे हुए. 2-2 पोतों को अपने आंगन में खेलते देख नलिनजी और उन की पत्नी ईश्वर का लाखलाख शुक्रिया अदा करते.
वक्त के साथ पोते बड़े हुए. दोनों ही मातापिता के नक्शेकदम पर चलते सीए बनने की पढ़ाई कर रहे थे.
वह दिन उन की जिंदगी का एक यादगार दिन था, जिस दिन बड़े पोते संकल्प के सीए की फाइनल परीक्षा का परिणाम आया. उस ने पहली ही बार में सीए क्लीयर कर लिया था.
वह अपने हर परिचित, जानने वाले के सामने पोते की इस सफलता का बखान करते नहीं अघाते. लेकिन उन्हें क्या पता था कि उन के सुख पर उन की अपनी नजर ही डाका डालेगी.
उन्हें लेशमात्र भी संदेह नहीं था कि पिछले जन्मों के कुछ बुरे कर्म भी उन के खाते में दर्ज थे, जिन का हिसाब उन्हें इस जन्म में चुकाना था.
उन की जिंदगी का वह मनहूस दिन उन के जेहन में आज भी यों ताजा था, जैसे कल की ही बात हो.
वह पत्नी के साथ अपने रिटायरमेंट तक सप्तपुरी यानी सात पवित्र शहरों की यात्रा कर चुके थे. अब उन की चार धामों की यात्रा की प्रबल इच्छा थी. उन्होंने बड़े पोते संकल्प से कह रखा था कि वे दोनों उस की नौकरी लगने पर पहली तनख्वाह से चार धामों की यात्रा करना चाहेंगे.
उन दिनों चारों धामों की 16 दिनों की यात्रा के लिए एक विशेष ट्रेन चलती थी. दादादादी की इच्छा का मान रखते हुए संकल्प ने अपनी पहली तनख्वाह से उन दोनों के लिए इस ट्रेन यात्रा की टिकट खरीद कर दी. वे दोनों अपने एक भतीजे के साथ हंसीखुशी यात्रा कर आए.
राजस्थान में प्रचलित जनआस्था के अनुरूप सप्तपुरी और चार धामों की यात्रा के बाद जयपुर के पवित्र गलता कुंड में बिना स्नान किए तीर्थयात्रियों की तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती थी.
तो एक छुट्टी के दिन वे दोनों पतिपत्नी पूरे परिवार के साथ गलता कुंड में स्नान के लिए तड़के सुबह गलताजी पहुंचे. पहले उन्होंने वहां के सभी मंदिरों के दर्शन किए.
“संकल्प भैया, नैचुरल ब्यूटी में तो यह जगह बेजोड़ है, लेकिन ये जगहजगह मंदिरों की दीवारों का उखड़ता पलस्तर और यहांवहां फैली गंदगी ने यहां घूमने का सारा मजा किरकिरा कर दिया.”
“यह तो है, यह जगह इतनी सुंदर है पराग कि अगर इस की ढंग से मेंटीनेंस की जाए, तो यह जयपुर के एक बेहतरीन टूरिस्ट स्पौट में बदल सकता है.”
“देखो भैया, वो फौरेनर कैसे उस बंदर को अपने कंधों पर बैठा कर फोटो खिंचवा रही है. ओह, यहां के बंदर बहुत दोस्ताना हैं.”
“हां, देखो वह बंदर तो उस लड़की से हैंड शेक कर रहा है,” तभी संकल्प ने तनिक मुसकराते हुए कहा.
तभी दादाजी बोले, “चलो, अब मंदिरों के दर्शन तो कर लिए, अब गलता कुंड में नहा लें. चलो बच्चो.”
लेकिन किसी को क्या खबर थी कि गलता कुंड में साक्षात महाकाल उन्हें अपने शिकंजे में कसने के लिए घात लगाए बैठा था.
उन्हें यदि लेशमात्र भी संदेह होता कि जीवनमृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्ति पाने के लिए गलता कुंड में लगाई गई डुबकी उन के अशेष दुखों का निमित्त बनेगी तो वह सपने में भी वहां जाने का खयाल तक न करते, लेकिन यमराज तो शायद उन के घर पर अपनी काली छाया का ग्रहण लगा चुके थे.
वह पत्नी सहित अपने बेटे, बहू और पोतों के साथ राम नाम जपते हुए गलता कुंड में उतरे.
गलता कुंड में नहाने उतरी उन के बेटे नमन की पत्नी, उन की इकलौती बहू का पांव देखते ही देखते फिसल गया और वह न जाने कैसे कुंड के गहरे पानी में चली गई, और पानी में डूबने लगी.
पत्नी को असहाय पानी में हाथपैर मारते देख पहले उन का बेटा नमन गहरे पानी की ओर बढ़ा, लेकिन वह भी अपना संतुलन खो बैठा और गहरे पानी में डूबने लगा.
मां और पापा दोनों को डूबता देख उन का बड़ा बेटा संकल्प हिम्मत कर उन्हें बचाने गहरे पानी में उतरा, लेकिन कुंड की गहराई उसे भी देखतेदेखते लील गई.
यह सब देख वे दोनों पतिपत्नी घबराहट और दहशत से चीखपुकार मचाने लगे.
पराग, उन का छोटा पोता उन दोनों को चीखतेचिल्लाते देख उन्हें समझातेबुझाते किनारे पर ले गया, और उन्हें तसल्ली देने लगा कि “संकल्प भैया को तैरना आता है, इसलिए वह मम्मापापा को बचा कर ले आएगा”, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था.
मोक्ष पाने की कामना से किए गए इस स्नान ने उन्हें और उन की पत्नी के लिए इसी धरती पर साक्षात नर्क के द्वार खोल दिए.
पलभर पहले हंसतेचहकते तीन प्राणी लाश बन कर लौटे.
अपनी आंखों के सामने एकलौते बेटे, बहू और जवान पोते की मृत्यु देखने के संताप से बढ़ कर शायद कोई दुख नहीं.
तीनतीन संतानों को खो कर वह और पत्नी पत्थर के बन कर रह गए. इस गम से पत्नी ने खाट पकड़ ली और इस सदमे से वह साल के भीतर ही भगवान को प्यारी हो गई.
दादाजी ने एकमात्र बचे छोटे पोते को अपने सीने से लगा लिया. बेटा, बहू और एक पोते को खोने के बाद अब पराग ही उन के जीने का एकमात्र सहारा था.
इधर पलक झपकते ही मां, पापा और बड़े भाई को खो कर पराग अर्धविक्षिप्त सा हो गया. वह दिनदिन भर अपने कमरे में बैठा शून्य में ताकता. न उसे खानेपीने की सुध रहती, न नहानेधोने या पढ़ाई करने की. रातों को नींद न आती. दादाजी उसे अपने कलेजे से लगा कर थपकियां देते हुए सुलाने की लाख कोशिश करते, लेकिन वह एक घड़ी भी सो न पाता.
उसे सुकून मिलता तो महज अपनी गर्लफ्रैंड तानी के साथ. वह उस के घर के सामने रहने वाले एक परिवार की बेटी थी.
वे दोनों बचपन से एकसाथ पलेबढ़े थे. इस दुर्घटना के महज एक सप्ताह बाद ही उन दोनों को सीए फाइनल का एग्जाम देना था.
तानी ने तो सीए का फाइनल एग्जाम दिया और उस ने पहली ही बार में उत्तीर्ण कर लिया, लेकिन घर में तीनतीन मौतों के बाद पराग की मानसिक हालत ऐसी न थी कि वह परीक्षा दे पाता. तो उस ने उस बार सीए फाइनल एग्जाम नहीं दिया.