"तुम्हारे लिए शुभ समाचार है शिप्रा पटेल," मोहिनी बड़ी अदा से मुसकराई मानो शिप्रा पर कोई उपकार कर रही हो.
‘‘शुभ समाचार... वह भी तुम्हारे मुंह से? चलो, सुना ही डालो,’’ शिप्रा व्यंग्य भरे लहजे में बोली.
‘‘तुम्हारे प्यारे आशीष गुर्जर को मैं ने तुम्हारे लिए छोड़ दिया है. अब तुम साथ जीनेमरने के अपने वादे पूरे कर सकते हो,’’ मोहिनी पर्स से दर्पण निकाल कर अपनी छवि निहारते हुए बोली.
‘‘मेरी चिंता तुम ना ही करो तो अच्छा है. पर, बेचारे आशीष को क्यों छोड़ आई? कोई मिल गया क्या?’’
‘‘तुम्हें नहीं पता क्या? मेरा विवाह दिल्ली के प्रसिद्ध व्यावसायिक घराने में तय हो गया है. आशीष बहुत रोयागिड़गिड़ाया, कहने लगा कि मैं ने उसे छोड़ दिया तो आत्महत्या कर लेगा. उस ने क्या सोचा था? मैं उस से विवाह करूंगी? मैं ने ही उसे समझाया कि वैसे तो शिप्रा अब तक तुम्हारी बाट जोह रही है. और फिर जाति के बाहर शादी करने पर होहल्ला बेकार ही हो, इसलिए यह संबंध यहीं खत्म करना होगा. पर वह मूर्ख कुछ सुनने को तैयार ही नहीं है.’’
‘‘तुम से किस ने कहा कि मैं आशीष की बाट जोह रही हूं. तुम होती कौन हो मेरे संबंध में इस तरह की बात करने वाली?" शिप्रा कोध में आ गई.
‘‘पर, यों कहो कि तुम्हारी ऊंची जाति की अकड़ अब बीच में आ गई है. हम पिछड़ी जाति वालों को तो तुम वैसे ही पीठ पीछे बुराभला कहते रहते हो.’’
‘‘लो और सुनो, मैं तुम्हारी सब से प्यारी सहेली हूं, अब क्या यह भी याद दिलाना पड़ेगा?’ क्या जाति की बात मैं ने कभी की थी?"