कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

दोनों के बीच 2 दिनों तक अबोला पसरा रहा था. 2 दिन बाद क्रोध शांत होने पर परेश ने बताया था कि दो दिन पहले के मोहिनी के व्यवहार से मां बहुत नाराज हैं. वे नहीं चाहतीं कि नौकरचाकरों के समक्ष इस तरह का बेतुका व्यवहार किया जाए. वे घर की बहू से शालीनतापूर्ण व्यवहार की अपेक्षा करती हैं.’’

‘‘और क्या आशा करती हैं वे घर की बहू से?’’ मोहिनी ने व्यंग्य किया था.

‘‘भाभी हैं घर में, कितने बड़े घर की बेटी हैं, पर आज तक किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया. उन से कुछ सीखो मोहिनी.’’

‘‘सबकुछ मुझे ही सीखना होगा? मां निम्मी से पूछने की जगह मुझ से बात कर सकती थीं, पर उन्हें घर की बहू से अधिक नौकरों पर विश्वास है,’’ मोहिनी की आंखें डबडबा आई थीं.

‘‘दोष तुम्हारा नहीं, मेरा है. मां ने पहले ही कहा था कि तुम्हारे और हमारे जीवन मूल्यों में जमीनआसमान का अंतर है. पर, मैं ही मूर्ख था कि भीतरी गुणों को छोड़ कर बाहरी सौंदर्य पर रीझ गया था.’’

‘‘तो भूलसुधार क्यों नहीं कर लेते? अब भी कुछ नहीं बिगड़ा,’’ दोनों की कहासुनी धीरेधीरे झगड़े का रूप लेती जा रही थी.

‘‘खबरदार, जो ऐसी बात पुन: मुंह से निकाली. हम किसी का हाथ थामते हैं तो जीवनभर निभाते हैं. मैं ने कहा था ना कि हम दोनों के जीवन मूल्यों में बहुत अंतर है,’’ परेश इतनी जोर से चीखा था कि आंनदी देवी दौड़ी आई थीं.

‘‘क्या हुआ...? मुझे तुम से यह आशा नहीं थी मोहिनी? सुबह का थकाहारा पति घर आया है और आते ही महाभारत शुरू. ये नौकरचाकर क्या सोचते होंगे? कुछ तो शर्म करो,’’ वे आते ही मोहिनी पर बरस पड़ी थीं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...