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रत्ना ने राजनीति शास्त्र में यों ही डिगरी नहीं ली, वह उन सब के भीतर छिपी चालाकी को समझ पा रही थी. यह दोनों पार्टियां महज उसे मोहरे की तरह इस्तेमाल करना चाहती हैं, उन के साथ जुड़ना यानी अपनी साफसुथरी छवि को नष्ट करना है और वह अपनी आन, बान, शान और स्वाभिमान से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगी. अतः उस ने निर्णय लिया कि वह स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप से खड़ी होगी. यद्यपि उस के पास संसाधनों का अभाव था, फिर भी उस ने अपनी मुहिम जारी रखी.

“मेरी भोली जनता, यह महंगाई कहीं से आई नहीं है, यह लाई गई है तथाकथित नेताओं के द्वारा. कारण नेताओं को वीआईपी सुविधाएं चाहिए, कहीं जाएंगे तो पूरी पायलट सुविधा चाहिए, 10-10 गाड़ियों का काफिला साथ चलेगा, हथियारबंद कमांडर साथ चलेंगे. अरे क्यों भई...? इतना ही डर लगता है, तो क्यों आए हो राजनीति में...? दौलत कमाने? जनता की गाढ़ी कमाई पर ऐश करने?

"सोचो जरा, कहां से होंगे उन के खर्चे पूरे, देश की जनता है न मुरगा बनाने को. कभी सोचा है, एक कर्मचारी जो संस्था को पूरी उम्र दे देता है, उस की पैंशन हटा दी गई. और नेता... यदि वे एक दिन को पार्षद भी बन जाएं, उन की आजन्म पैंशन शुरू हो जाती है...

"इतना ही नहीं, वे कईकई मद से पैंशन ले रहे हैं. क्या यह सरासर जनता पर अत्याचार नहीं...? उन की कमाई पर सीधेसीधे डाका नहीं...? सारे पैट्रोल पंप, स्कूल, प्राइवेट अस्पतालों में उन के शेयर हैं, जबकि वे अपने को जनता का सेवक कहते हैं. जनता को अब आगे आना होगा, मालिक है तो मालिकाना हक जतलाना होगा. राजनीति को वापस सुधार की आवश्यकता है. देश की जनता में बहुत ताकत है, बशर्ते कि वह अपनी ताकत को समझे,“ रत्ना की यह आवाज बरसों से जनजन की आवाज थी, बस उस में वाणी नहीं थी. जो मिली रत्ना से, सो जनसैलाब रत्ना की ओर उमड़ पड़ा. उस की छवि शहर की दबंग और जनता की सच्ची सेवक के रूप में बनते देख विपक्षी बौखला रहे थे.

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