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अपनी मंजिल की ओर रत्ना का पहला कदम बढ़ चुका था. कारण राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू खुद चल कर उस की झोली में आ गिरा. हुआ दरअसल यह कि बदुआ इलाके में एक दलित महिला के साथ अभद्र व्यवहार किए जाने की खबर सुर्खियों में बनी.

“दीदी, आप हमारी मदद कीजिए. दरअसल, शहर का गुंडा पप्पू भैया हमारे परिवार की बहू पर बुरी नीयत रखे है. कुछ कहें तो दादागीरी पर उतारू हो जाता है. प्रभावशाली है, राजनीति में सिक्का चलता है उस का. अब आप ही हमारी सहायता कर सकती हैं.”

यद्यपि, रत्ना का यह कदम राजनीति से प्रेरित नहीं था. केवल मानवता के नाते उस ने पीड़िता की सहायता के लिए पप्पू भैया को आड़े हाथों लिया.

शहर में रत्ना का इतना प्रभाव बन चुका था कि कोई भी राजनीतिक पार्टी उस से पंगा ले कर अपने लिए गड्ढा खोदना नहीं चाहती थी. सो, सभी सत्ताधारियों ने हाथ पीछे खींच लिए, जब सत्ता का आश्रय छिन जाए तो सत्ता की उंगलियों पर नाचने वाले कानून की क्या ताकत, जो पप्पू भैया को सहारा दे. परिणाम सीआरपीसी की धारा 154 के तहत एफआईआर दर्ज कर पप्पू भैया को हवालात का रास्ता दिखा दिया रत्ना ने.

रत्ना के कदमों को राजनीति में ठोस आधार देने के लिए यह घटना काफी थी. अब तो रत्ना पूरे सागर जिले की दीदी हो गई. लोग दिल से उस का सम्मान करते, उस की बात को ध्यान से सुनते. वह अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए मंचों का प्रयोग करती. जहां कहीं कोई आयोजन होता, वह वहां जा कर सभा के बीच अपनी बात रख उन से समर्थन मांगती, उन्हें भ्रष्टाचार के विरोध हेतु आगाह करती.

“प्यारे देशवासियो, आज राजनीति अवसरवादिता, गुटबंदी, झंडा बदलू प्रवृत्ति और नेताओं की व्यभिचारिता, स्वार्थ साधना, चरित्रगत मूल्यों की गिरावट, असामाजिक तत्त्वों के गठबंधन से पीड़ित है. इस का दुष्परिणाम केवल और केवल आम जनता को झेलना पड़ रहा है.

“अफसोस, ये पथभ्रष्ट जिन के मन में तनिक देशप्रेम नहीं, वे देश की बागडोर अपने हाथों में लिए बैठे हैं. भला देश कैसे कोई सही दिशा पाएगा?”

रत्ना कुशल वक्ता है, भाषा पर उस का पूरा अधिकार है, अपनी बात को श्रोताओं के बीच किस तरह रखना है, यह कला है उस में, उस पर उस के दिल की सचाई को भी कहीं न कहीं जनता देख और समझ पा रही थी. इसी का परिणाम है कि उसे शीघ्र ही जनता का भरपूर समर्थन मिलने लगा. उस की ख्याति दिल्ली के दरबार तक पहुंच गई, जिस से विपक्षी पार्टियों के आलाकमान की फटकार पड़ने लगी अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं को.

“ससुर के नातियो, क्या नशा कर के पड़े हो…अरे उ, कल की छोकरी आ कर चार दिन में जनता के सिर पर नाचने लगी, का इ बार पार्टी का भट्ठा बैठाने का इरादा है?” उस के प्रभुत्व को स्थापित होता देख दोनों विपक्षी पार्टियों (नैशनल पार्टी और देश हिताय पार्टी) में खलबली मच गई.

राजनीति का सब से सस्ता फंडा है, अगर कोई दल मजबूत लग रहा है तो अपनी पार्टी छोड़ कर उस से जा मिलो या उसे अपनी पार्टी में मिला लो. रत्ना आखिर एक स्त्री है. स्त्री की सत्ता स्वीकारना पुरुषों के लिए यों भी पाच्य नहीं, इसलिए दोनों पक्षों ने अपने खुफिया दलाल रत्ना के पास भेजने आरंभ कर दिए.

“उ बिटिया, हम तोहार के बचपन से जानत है, इ राजनीति औरतन के बस की बात नाही बिटिया… फिर भी तोहार मन है तो हम नैशनल पार्टी वालन से बात करेंगे तोहार अपनी पार्टी में सामिल कर लेय. जइसन घर में बिना मरद के औरत की कोई बखत नाही. वैसन बिना पार्टी के इकल्ले आदमी की कोई पूछपरख नाही. तू कहे तो हम बात करेंगे रामकिशनजी से… हमाय अच्छे मित्र हैं.”

उधर देश हिताय पार्टी से भी किसी न किसी रूप में लोग रत्ना के घर आने लगे.

“मैडमजी, आप जैसे होनहार नेताओं का हमारी पार्टी में स्वागत है, हमारी पार्टी महिलाओं को सम्मान देना जाती है, आप हमारी पार्टी में शामिल हो जाइए, आप को हमारी पार्टी में वही सम्मान मिलेगा, जो सुषमा स्वराज को अपनी पार्टी में मिला था. हम प्रतिभा की कदर करना जानते हैं.”

 

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