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सानविका को इस तरह बेचैन हो कर करवटें बदलते देख समीर ने हलके हाथों से उस के सिर को सहलाते हुए पूछा,'' तबीयत तो ठीक है ना तुम्हारी, या फिर कोई परेशानी तो नहीं है?'' जवाब में सानविका ने सिर्फ इतना ही कहा, ''कुछ भी नहीं. बस, थोड़ा काम का प्रेशर है, सिर में दर्द है...,'' और फिर सानविका ने झट से लाइट औफ कर सोने की चेष्टा में आंखें मूंद ली, लेकिन नींद थी कि कोसों दूर.

सानविका ने मन ही मन तय किया कि कल कालेज से निकल कर वह सीधे साधना दी के घर हो आएगी. और यदि समीर ने कुछ पूछा, तो एक्स्ट्रा लेक्चर का बहाना बना देगी. सानविका के मन को साधना के वो शब्द और उस के पीछे छिपा दर्द देर रात तक बेचैन किए रहा. अगले दिन लगभग ढाई बजे तक सानविका अपने सारे लेक्चर खत्म कर कालेज के सभी काम से फ्री हो चुकी थी.

कालेज के गेट से बाहर निकल कर उस ने टैक्सी ले ली और टैक्सी ड्राइवर को दिल्ली के पौश एरिया गुलमोहर पार्क चलने के लिए कहा. साधना दीदी का बंगला दिल्ली के उसी पाश एरिया में स्थित था. उस के कालेज से उस की दूरी लगभग 2 घंटे की थी, लेकिन दिल्ली के ट्रैफिक में उसे वहां पहुंचने में लगभग तीन घंटे का समय लग गया. लगभग 5:30 बजतेबजते वह साधना के बंगले के आगे खड़ी थी.

उस ने अपनी कलाई घड़ी देखी, तो शाम के 5:30 बज रहे थे. कुछ पल के लिए सानविका दरवाजे के बाहर खड़ी सोचती रही. उस के मन में एक अजीब तरह की हलचल सी मची हुई थी. कुछ पल वैसी ही खड़ी वह कुछ सोचती रही और फिर एकदम से उस ने अचानक डोरबेल दबा दी. कुछ 5 मिनट तक वह बाहर ही खड़ी दरवाजा खुलने का इंतजार करती रही, लेकिन अंदर से कोई जवाब ना पा कर उस ने वापस से डोरबेल बजाने के लिए हाथ उठाए ही थे कि एक अनजान चेहरे ने दरवाजा खोला, ''मैडम अंदर आ जाइए,'' बड़े ही शिष्टतापूर्वक एक दुबलीपतली सी दिखने वाली महिला उसे अंदर आने का इशारा करते हुए उस से कहा, जिस की उम्र तकरीबन 25-28 साल के बीच की रही होगी.

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