कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

“आज फिर से वही फोन कौल…, वही नंबर…, उफ्फ…,” सानविका ने जैसे ही घर का दरवाजा खोलने के लिए अपने पर्स से घर की चाबी निकाली, उस का मोबाइल फोन बज उठा. एक हाथ से घर के दरवाजे का ताला खोलते हुए उस ने दूसरे हाथ से मोबाइल का आंसर बटन दबा दिया.

बहुत देर तक हैलोहैलो करने के बाद भी दूसरी तरफ से कोई जवाब न पा कर उस ने फोन कट कर दिया और दरवाजा खोल कर घर के अंदर आ गई.

आज कालेज में वैसे ही वर्क लोड अधिक था, एक्स्ट्रा क्लासेस लेने पड़े थे उसे. सिर दर्द से फटा जा रहा था. उस ने सोचा था कि घर पहुंच कर एक कप गरम कौफी पी कर आने वाले एग्जाम के लिए क्वेश्चन्स सेट करने का काम पूरा कर लेगी, लेकिन बारबार आने वाले इस अननोन कौल्स ने उसे परेशान कर दिया था. लगातार आने वाले अननोन कौल्स से चिढ़ी हुई सी वह अपने पर्स को डाइनिंग टेबल पर रख सीधे किचन में कौफी बनाने चली गई.

कौफी बनाने के लिए उस ने जैसे ही गैस चालू किया, वापस मोबाइल फोन बज उठा. झुंझलाते हुए उस ने फोन उठा लिया, फोन पर वही नंबर फ्लैश हो रहा था. उस के मुंह से खीज भरी आवाज निकली, ‘यदि बात नहीं करनी है तो किसी को व्यर्थ में फोन कर के क्यों परेशान कर रहा है कोई… कौन है?’ गुस्से में उस ने आंसर बटन दबाते हुए पूछा और साथ ही फोन को स्पीकर पर डाल फ्रिज से दूध निकालने के लिए किचन की ओर बढ़ गई, लेकिन दूसरी तरफ से कांपती हुई जिस आवाज को उस ने सुना, उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ.

“हैलो, स… सानविका,” कितने वर्षों के बाद वह इस आवाज को सुन रही थी. उस के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, “दीदी, तुम… कैसी हो?”

”हां, सानविका… मैं. क्या तुम मुझ से आ कर मिल सकती हो? देख, मना मत करना… अगर मैं आ पाती तो, मैं ही आ जाती… देख, समीर से कुछ मत बताना. मैं जानती हूं, वह तुम्हें कभी भी मुझ से मिलने नहीं देगा.”

”कैसी बातें कर रही हो दीदी? मैं ने वह सब कब का भुला दिया. मैं ने आप की किसी भी बात को दिल से नहीं लगाया.”

“दिल से नहीं लगाया तो…, इतने वर्षों तक मिलने का मन क्यों नहीं हुआ? मैं जानती हूं कि तेरा दिल काफी बड़ा है. तुम ने तो मुझे कब का माफ कर दिया होगा. लेकिन, मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है, बस, इतनी विनती है कि तू एक बार मुझ से मिलने आ जा… मैं ने बहुत बार कोशिश की तुम से बात करने की, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाई,” इतना कहतेकहते साधना के होंठ जैसे सिल गए, लफ्ज जैसे जम गए, गला रुंध सा गया और इस से आगे वह कुछ और कह न सकी और फिर उस ने फोन कट कर दिया.

सानविका के कानों में देर तक उस की बहन साधना की आवाज गूंजती रही. दिमाग के सारे तंत्र उस एक वाक्य पर ठहर से गए. वह देर तक सोचती रही, ‘क्या तुम मुझ से एक बार मिल सकती हो? मैं आ पाती तो…?

‘जाने क्या बात होगी कि साधना दी ने ऐसी बात कही. समीर नाराज है, क्योंकि समीर से मेरा अपमान बरदाश्त नहीं हुआ और ऐसे में वह कभी भी नहीं चाहेगा कि मैं दीदी के घर जाऊं. उस की नाराजगी जायज भी है.’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...