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रंगरूप में सानविका से अधिक श्रेष्ठ होने के भाव ने साधना को इतना अहंकारी बना दिया था, श्रेष्ठता का यह भाव उस के मन पर इस कदर हावी हो गया था कि सानविका की बुद्धि में श्रेष्ठ होने की बात साधना से बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. अब वह हर बात पर सानविका को अपमानित करने लगी थी, और फिर धीरेधीरे यह उस की आदत भी बन गई.

धीरेधीरे साधना के दिलोंदिमाग पर उस के रंगरूप का घमंड इस तरह छा गया कि जिस के दंभ में उसे कुछ भी ना तो अब नजर आता था और न ही समझ में आता था.

साधना की बुद्धि पर अपने रंगरूप के अहंकार की ऐसी परतें जम गईं कि जिस की धुंध में वह अब कुछ भी देखसुन पाने में असक्षम थी, वह सानविका को अपमानित करने का कोई भी मौका अपने हाथ से जाने नहीं देती.

जहां सानविका पढ़ाई में एक के बाद एक सफलता प्राप्त करती जा रही थी, वहीं साधना का मन अब पढ़ाई से ही जी चुराने लगा था. वह अपनी सारी ऊर्जा, सारी शक्ति सिर्फ और सिर्फ सानविका को नीचा दिखाने में खर्च करने लगी थी. जैसे कि अब उस के जीवन का एकमात्र यही उद्देश्य रह गया हो...

सानविका ने जहां पीएचडी की डिगरी हासिल कर ली, वहीं साधना ग्रेजुएशन से आगे पढ़ ही नहीं सकी और फिर जल्द ही उस की शादी किसी बिजनैसमैन से कर दी गई. इधर सानविका ने भी अपने पसंद से समीर नाम के लड़के से शादी कर ली. लेकिन अपने घरगृहस्थी में जमने के बाद भी साधना के मन से सानविका के प्रति ईष्या एवं घृणा का भाव खत्म नहीं हुआ. सानविका को नीचा दिखाने का सिलसिला जारी ही रहा.

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